वैदिक व्याकरण भाग 2 | Vedic Vyakaran Bhag 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.81 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२१४ ) , नूतकालचाचक अर तथा भाद झागम ४८
जे
७
ए० में इप “चाहना” से ऐस्छेंद , उद (पा० उन्दी) “गीला
करना” से सौनत् , कऋषध् “समृद्ध होना” से आध्नौत् । इस के
श्रतिरिक्त ऋ० में निम्नलिखित नकारादि, यकारादि, रेफादि तथा
वकारादि धातुद्रों के अ्रज्न से पूर्व भी आठ आगम मिलता है ;
यथा-- नद्य, “पहुंचना” * से आनंद” (लु० प्र० पु ए०); युज्
“सजोतना” से आयनक (लड प्र० पु ए०), श्षार्युक्त (लुल प्र० पु०
ए०), आर्युक्षाताप् (लु० प्र० पु० द्वि०); रिचू “खाली करना” से
शारिंणकू (लड़ प्र० पु० ए०). मरिक (लु० प्र० पुर ए०); व
' 'आाच्छादित करना” से आावर (लु० प्र० पुर ए०); व. 'स्चुनना””
से आवुणि दल उ० पु० ए०); बृजू ' हटाना” से आाद्रणक् (लड़
प्र० पुर ए०); व्यघ् “ बींधना” से आविध्युत्त (लड़ प्र० पुर ए०) ।
इस सम्बन्ध में यह तथ्य विशेषतया उल्लेखनीय है कि आनद तथा
आवर को छोड़ कर शेष रूपों का आदि क्षा पपा० में हस्व कर दिया
जाता है और अुयुनकऋ , शर्युक्त तथा अविध्यत् में संहिता में
भी लट् आगम मिलता है ।
चहुत से वैदिक रूपों में अट या आंदू आगम का लोप मिलता
है*; यथा ऋ० के लगभग २००० रूपों में आगम का लोप और लग-
भग ३३०० में इस का यथोचित प्रयोग मिलता है । इन आगमरदित
रूपों में भाधे से अधिक रूप लुड के है । अ० में आगमयुक्त रूपों की
तुलना में आगमरहित रूप आधे से भी कम हैं ओर इन में से लगभग
८० प्रतिशत आगमरहित रूप केवल लुड के है । इस सम्बन्ध में
यह बात ध्यान देने योग्य है कि सभी आगमरहित रूप भुतकालवाचक
नहीं है। कऋ० के आगमरहित रूपों में से लगभग आधे रूप भूतकाल-
वाचक और आधे रूप विधिमूलक लकार (एपफुंण्णलरंए्छ) के माने
जाते हैं। और इन में से लगभग एक-तिहाई विधिमूलक रूप निपेघ-
वाचक निपात सा के साथ प्रयुक्त होते हैं । अ० में आगमयुक्त रूपों
की तुलना में आगमरहिंत रूप एक-तिहाई से भी कुछ कम हैं और
लगभग €० प्रतिशत से अधिक आगमरहित रूप विधिमलक हैं । इन
सप्तमो'ध्यायः
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