संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ | Sanskrit Shabdarth Koistubh
श्रेणी : भाषा / Language, हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.99 MB
कुल पष्ठ :
923
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महि
“न न, अकत
चिन्ता या पाप का स्वामी । मलमास ।--पत्य
-न०) चिन्ता या कष्ट के ऊपर विजय पाना 1
अंक्लि-(पुं०)[५/श्रंहजक्रि पर। पेड़ की
जड़। चार की संख्या 1--प-(पूं०) पादप,
जड़ से जल पीने चाला श्रर्थात् . वृक्ष ।--स्कन्च
-(पुं०) एड़ी श्रौर घुटने के दोच का
भाग |
अक--म्वा० पर० अक० घूमघुमौद्ना चाल
चलना, सर्पाकार चलना । अर्कति ।
झझक--(न०) [न कमू न० त०] हष॑ का
अभाव । पीड़ा ।.कष्ट । पाप ।
अकच--(वि०) [निस्ति कचों यस्य] गंजा,
जिसके सिर पर वाल न हों 1--(पूं०) केतु
यह का नाम ।
अकच्छ--(वि०) [नास्ति कच्छो यस्य न०
च०] नंगा । लंपठ ।
अकदुक--(वि०) [नि कटुक: न० त०ु जो
कड़वा न हो । जो थका न हो, भ्रक्लांत ।
. अझकण्टक--(चि०) [नि० विद्यते कण्टकों यत्र
: न० व०] बिना काँटे का ।
निर्षिध्न । दात्रु-
रहित ।
अकण्ठ--(वि०) [नास्ति कण्ठों यस्य न०
+ व०] जिसके कण्ठ न हो । स्वरहीन । ककंश ।
. श्रकत्थयन--(चि० ) [निस्ति कत्थनमू यस्मिनू
न० व०] दपहीन, जो घमंड न करे ।
अकथित--(बि०) [न कथित न० त्०] जो
.... मे कहा गया हो । अनुक्त, गौण कम
(व्या०) 1
ल अ्कनिष्ठ--(चबि० ) [न कनिष्ठ यस्मातू न०
द्रद
गे
, उवसे छोटा हो ।
व जिससे कोई छोटा न हो अर्थात् जो
[न कनिष्ठ: न० त०] जो
सबसे छोटा न हो । [श्रके->वेदनिस्दारूपे
. पाषे निष्ठा यस्व व० स०]--(पूंझ) गौतम वुद्ध
का नाम ।
अकन्या--([स्त्री० )[न कन्या न० त०]
बवारपन उतर चुका हो ।
अकम्पन--(नं०) [न कम्पनमु न० त०] न
_काँपना । [न विद्यते कम्पनम् यत्र न० व०] -
(चि०). कंपरहित, स्थिर ।--(पूं०) रावण के
दल का एक राक्षस ।
श्रकस्पित--(चि०) [न कम्पित: न० त०]
जो कँपा न हो। स्थिर ।--(पुं०) महावीर
(अंतिम तीर्थंकर) के ग्यारह शिष्यों में से
एक ।
श्रकर--(चि०) [न विद्यते करो यस्य न० व०
लुंजा, जिसके हाथ न हो । श्रकमंण्य, जो कुछ
नकरे। चह माल जिस पर चूंगी न लगें था
चह व्यक्ति जिस पर कर न हो ।
श्रकरण--न० [नि करणम् न० त०] कुछ न
करना, क्रिया का झभाव |
श्रकरणि--(स्त्री ). [नि५/किन-अनि] झस-
फलता 1 नेराश्य । श्रपूर्णता । इसका प्रयोग
प्रायः किसी को शाप देने या किसी की श्र-
मंगल कामना करने में होता है !
श्रकरा--([स्त्री० ) [न क+अ्रच] ऑआँवले का
वृक्ष, ब्रामलकी ।
श्रकराल--(वि०) [न कराल: न० त०] जो
भयावह न हो । सौम्य । सुन्दर ।
श्रकरुण--(चि०) [नास्ति करुणा यस्य न०
च०] दयारहित । निठटुर |
अककंदा--(वि०) [न ककंश: न०
जो कर्क या कठोर न हों । नरम ।
झकर्ण--(वि०) [निस्ति कर्णों यस्य न०
व०] क्णरहित, जिसके कान न हो । वहरा ।
(पुं०) सर ।
श्कण्य--(वि०) [न--कर्णकयतू] जो कानों
के योग्य न हो !
झकलेन--(चि०) [+कवन-युचू, न० त०]
वौना, चामन ।. [८ कृदू+ल्युटू, न० व०]
जो न काटे ।
अकतूं--(चि०) [न कर्ता न० तथ्य जो
कर्ता न हो, कर्म न करने वाला ।--(पुं० )
कर्मों से निरलिप्त पुरुप (सांख्य०) ।
त०]
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rakesh jain
at 2020-12-04 13:30:18