संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ | Sanskrit Shabdarth Koistubh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महि “न न, अकत चिन्ता या पाप का स्वामी । मलमास ।--पत्य -न०) चिन्ता या कष्ट के ऊपर विजय पाना 1 अंक्लि-(पुं०)[५/श्रंहजक्रि पर। पेड़ की जड़। चार की संख्या 1--प-(पूं०) पादप, जड़ से जल पीने चाला श्रर्थात्‌ . वृक्ष ।--स्कन्च -(पुं०) एड़ी श्रौर घुटने के दोच का भाग | अक--म्वा० पर० अक० घूमघुमौद्ना चाल चलना, सर्पाकार चलना । अर्कति । झझक--(न०) [न कमू न० त०] हष॑ का अभाव । पीड़ा ।.कष्ट । पाप । अकच--(वि०) [निस्ति कचों यस्य] गंजा, जिसके सिर पर वाल न हों 1--(पूं०) केतु यह का नाम । अकच्छ--(वि०) [नास्ति कच्छो यस्य न० च०] नंगा । लंपठ । अकदुक--(वि०) [नि कटुक: न० त०ु जो कड़वा न हो । जो थका न हो, भ्रक्लांत । . अझकण्टक--(चि०) [नि० विद्यते कण्टकों यत्र : न० व०] बिना काँटे का । निर्षिध्न । दात्रु- रहित । अकण्ठ--(वि०) [नास्ति कण्ठों यस्य न० + व०] जिसके कण्ठ न हो । स्वरहीन । ककंश । . श्रकत्थयन--(चि० ) [निस्ति कत्थनमू यस्मिनू न० व०] दपहीन, जो घमंड न करे । अकथित--(बि०) [न कथित न० त्०] जो .... मे कहा गया हो । अनुक्त, गौण कम (व्या०) 1 ल अ्कनिष्ठ--(चबि० ) [न कनिष्ठ यस्मातू न० द्रद गे , उवसे छोटा हो । व जिससे कोई छोटा न हो अर्थात्‌ जो [न कनिष्ठ: न० त०] जो सबसे छोटा न हो । [श्रके->वेदनिस्दारूपे . पाषे निष्ठा यस्व व० स०]--(पूंझ) गौतम वुद्ध का नाम । अकन्या--([स्त्री० )[न कन्या न० त०] बवारपन उतर चुका हो । अकम्पन--(नं०) [न कम्पनमु न० त०] न _काँपना । [न विद्यते कम्पनम्‌ यत्र न० व०] - (चि०). कंपरहित, स्थिर ।--(पूं०) रावण के दल का एक राक्षस । श्रकस्पित--(चि०) [न कम्पित: न० त०] जो कँपा न हो। स्थिर ।--(पुं०) महावीर (अंतिम तीर्थंकर) के ग्यारह शिष्यों में से एक । श्रकर--(चि०) [न विद्यते करो यस्य न० व० लुंजा, जिसके हाथ न हो । श्रकमंण्य, जो कुछ नकरे। चह माल जिस पर चूंगी न लगें था चह व्यक्ति जिस पर कर न हो । श्रकरण--न० [नि करणम्‌ न० त०] कुछ न करना, क्रिया का झभाव | श्रकरणि--(स्त्री ). [नि५/किन-अनि] झस- फलता 1 नेराश्य । श्रपूर्णता । इसका प्रयोग प्रायः किसी को शाप देने या किसी की श्र- मंगल कामना करने में होता है ! श्रकरा--([स्त्री० ) [न क+अ्रच] ऑआँवले का वृक्ष, ब्रामलकी । श्रकराल--(वि०) [न कराल: न० त०] जो भयावह न हो । सौम्य । सुन्दर । श्रकरुण--(चि०) [नास्ति करुणा यस्य न० च०] दयारहित । निठटुर | अककंदा--(वि०) [न ककंश: न० जो कर्क या कठोर न हों । नरम । झकर्ण--(वि०) [निस्ति कर्णों यस्य न० व०] क्णरहित, जिसके कान न हो । वहरा । (पुं०) सर । श्कण्य--(वि०) [न--कर्णकयतू] जो कानों के योग्य न हो ! झकलेन--(चि०) [+कवन-युचू, न० त०] वौना, चामन ।. [८ कृदू+ल्युटू, न० व०] जो न काटे । अकतूं--(चि०) [न कर्ता न० तथ्य जो कर्ता न हो, कर्म न करने वाला ।--(पुं० ) कर्मों से निरलिप्त पुरुप (सांख्य०) । त०]




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-04 13:30:18
    Rated : 9 out of 10 stars.
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