सभ्यता की कहानी भारत और उसके पड़ोसी देश | Sabhyata Ki Kahani Bharat Aur Unke Padosi Desh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.6 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ्रध्याय १४
भारतीय संस्कृति के मूलाधार
१, संस्कृति के नाटक का प्रथम अंक
भारत की पुतः खोज; मानचित्र पर एक दृष्टि; जलवायु का प्रभाव ।
हुवा के किसी आधुनिक विद्यार्थी के लिए इससे बढ़कर लज्जा की और कोई वात
नहीं हो सकती कि भारत के वारे में उसका ज्ञान चहुत सीमित और अपर्थाप्त हैं।
इस विशाल प्रायद्वीप का क्षेतफल लगभग २० लाख वगें मील है, तथा यह अमेरिका के
दो तिहाई भाग के वरावर और अपने शासक ग्रेट ब्रिटेन से वीस गुना बड़ा है इसकी
जन संख्या ३२,००,००,००० के लगभग है, जो कि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका की
सम्मिलित जनसंख्या से भी अधिक है और संसार की कुल जनसंख्या के पांचवें हिस्से के
वबरावर है। २९०० वर्ष ई० पू० या उससे भी अधिक पहले मोहनजोदाड़ो से लेकर
गांधी, रमण और टेंगोर तक सभ्यता और विकास का एक क्रमबद्ध सिलसिला यहाँ वरावर
चला आया है--अंधावुंघ और यहां तक कि वर किस्म की मूर्तिंपूजा से लेकर अत्यंत
सुक्ष्म और गढ़ रहस्यवाद के लगभग सभी स्तरों से पूर्ण, जहाँ ईसा से भी आठ शताब्दी पूर्व
“उपनिषदों' से लेकर ईसा से आठ शताब्दी वाद शंकर तक दार्शिमिकों ने एक ही
अद्वेतवादी विचारधारा को अनेक स्वरूपों में विकसित किया है; जहां के वंज्ञानिकों ने
तीन हजार वर्ष पूवें खगोलशास्त्र का विकास किया था और हमारे युग में भी जिन्होंने
नोबुल पुरस्कार प्राप्त किये हैं; जिसके गाँवों में अनादि काल से एक लोकतांत्रिक चिघान
का प्रयोग होता रहा है और जहाँ अशोक और अकबर के समान बुद्धिमान और प्रजा
प्रेमी शासक हो चुके हैं; जहाँ के चारण होमर द्वारा रचित महाकाव्यों के समान ही
प्राचीन महाकाव्यों का गायन करते रहे हैं और जहां के कवियों की रचनाओं को आज
हमारे युग में संसारव्यापी लोकत्रियता भाप्त हो रही है; जहाँ के कलाकारों ने तिव्वत से
छेकर श्रीठंका तक और कम्वोडिया से लेकर जावा तक हिन्दू देवताओं के लिए भव्य
मन्दिरों की रचना की है और मुगल वादशाड़ों और वंगमों के छेए सर्वाग सुंदर महलों की
रचना की है--यह है भारत, जिसकी जानकारी अब पठ्चिम को घीरे-घीरे प्राप्त हो
रही है, उस प्चिम को जो अभी कल तक यही माने वठा था कि सम्यता का केवल
यूरोप से ही सम्बन्ध है ।'
यह पुस्तक भारत की स्वाधीनता प्राप्त होने के बहुत पहले लिखी गई थी ।
१ सेगस्यनीज्ञ के समय से लेकर; जिसने लगभग ३०२ ई० पु० में यूनान को भारत
का परिचय कराया था, अठारहवीं ज्ञताब्दी तक भारत य्रोप के लिए एक आर्य
और रहस्य की वस्तु था। मार्को पोलो ने (सन् १२५४-१३२४) भारत की पद्चिमी
सीमा का एक बहुत ही अस्पष्ट चित्र उपस्थित किया, कौलस्वस भारत को खोजने के
प्रयास सें गलती से अमेरिका जा पहुंचा, वास्को-डी-गामा ने इसको पुनः खोजने के प्रयास
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