प्रमुख पाश्चात्य दार्शनिक | Pramukh Pashchatya Darshniak
श्रेणी : इतिहास / History, पश्चिमी / Western
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.87 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. डी. आर. जातव - Dr. D. R. Jatav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रमुख पाश्चात्य दार्शनिक पाइग्रेगोरस (?४9880785 570-500 छ.ए.) सामोस नामक शहर में पाइथेगोरस का जन्म हुआ 1 देश-वासियों के साथ राजनीतिक मतभेद होने के कारण उसे अपना प्रिय जन्म-स्थान छोड़ना पड़ा । तब वह क्राटोना में जाकर वस गया जहाँ उसने पाइथेगोरियन समाज की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य धार्मिक दार्शनिक नैतिक एवं राजनीतिक शिक्षा देता था। पाइ- थेगोरस घामिक मार्गदशंक होने के साथ-साथ उच्च कोटि का गणितज्ञ भी था। दोनों ही क्षेत्रों में उसने अत्यधिक ख्याति प्राप्त की । पाइथेगोरस ने संख्या सिद्धांत (रेण्एए67 पफ़८ 01४) का प्रतिपादन किया जिसमें वस्तुओं के परिमाणात्मक सम्बन्धों को ढं ढ़ने का प्रयास किया गया है । इस सिद्धांत के अनुसार जगत में आकार (० ) और सम्बन्ध (रिट18007 ) मुख्य हैं । मापन अवस्था संतुलन एकरूपता आदि को संख्या के आधार पर व्यक्त किया जा सकता है । संख्याएं वे सत्य इकाइयां हैं जिनकी अन्य सभी वस्तुएं अभिव्यक्ति मात्र हैं । पाइथेगोरस के अनुसार संख्याएं वस्तुओं के सिद्धांत हैं न कि वस्तुओं का मूल द्रव्य जैसा कि माइलेशियन मत में माना गया है संख्याओं से वस्तुओं के आकारगत (£01- ए181) अथवा सम्बन्धात्मक (८80००४ )ढ़ांचे का निर्माण होता है । वस्तुएं इन्हीं संख्याओं की प्रतियां मात्र हैं । इस प्रकार यदि वस्तुओं का सार संख्या है तो जो कुछ संख्याओं के बारे में सत्य है वही वस्तुओं के सम्बन्ध में सत्य होगा । संख्याओं में सम व असम (60 806 एश८ए6एण) का भेद होता है । असम को दो से विभाजित नहीं किया जा सकता जबकि सम को किया जा सकता है । असम संख्याएं सीमित होती हैं पर सम संख्याएं असीम हैं । ये असम और सम ससीम और असीम परिसित और अपरिमित संख्याएं संख्या और यथार्थता का सार हैं । प्रकृति स्वतः विरोधों का संगठन है सम तथा असम संख्याओं का एक रूप है संख्या सिद्धांत की दृष्टि से पाइथेगोरस ने भौतिक जगत् (प्रकृति ) की संख्यारमक व्या- ख्या प्रस्तुत की । बिन्दु एक रेखाएं दो आकार तीन तथा ठोस चार संख्याओं के साथ जुड़े हुए हैं । इसी तरह पृथ्वी घनसूल अग्नि चतुष्फलक वायु अष्टपदी और जल विशफलक है । रेखाओं और वस्तुओं की सतहों को पाइथेगोरस ने स्वतंत्र सत्ताओं के रूप में माना है जिनके बिना कोई भी वस्तु शरीर सम्भव नहीं हो सकता । आकाशीय आकार भौतिक वस्तुओं के कारण हैं और चु कि आकारों को संख्याओं द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है इसलिए संख्याएं ही मुल कारण हैं । यहाँ तक कि नीतिशास्त्र के मूल्यों प्रेम मिदता न्याय सद्गुण निष्ठा को संख्या के आधार पर वतलाया जा सकता है । प्रेम और मिब्नता को आठ की संख्या के साथ जोड़ा जा सकता है । प्रेम और मित्रता सामजस्यपूर्ण हैं और आठ की संख्या भी सामंजस्यपूर्ण है 1
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