केशव - सुधा | Keshav Sudha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श कशब-सुघा ,ः डर . ् : रामचन्द्रिका के पर्थों को तीन भागों में चाँटा जा सकता दै-: ( १ ) संवादात्मक, ( रू) बर्णनात्मक श्पौर ( ३ ) कया-सूतर जोड़ने वाले [.......:... कथा-सूत्र जोड़ने वाले पद्यों से भाव-पू्ण होने की आशा: नददीं की जा सकती । वे नीरस दोते हैं पर प्रचन्व-रस से सरस. प्रतीत दोने लगते हैं, केशव में प्रवन्व-रस की कमी हैं । अतं: ये पद्य कविता की दृष्टि से साघारण हैं| .”. ... . . . .... “कैंशाव के संवाद श्चिकांश में सुन्दर हैं. संवादात्मक पंथ्य भाव यूण है पर उनमें से बॉविकोंश संस्कृत के झनुवाद- मात्र दें। सुर्मात-विमति का संवाद प्रसन्नरावव के वातालाप का. झनवाद है । रावंणुवाण-संवादिफर आर राम परशुराम- संवाद 'पर भी, प्रसन्नरावव का काफ़ी प्रभाव .दे। भरत-के केयी का संवाद दजुमघ्नाटक के अंक पद्य का झजुवाद हू, यही वात रावण-दजुमान श्रौर झज्मद-रावण के संवादों, पर लागू: होती है। चणुनाव्मक पद्य अन्थ के सब श्रेष्ठ झंश हैं। उनमें से . अनेक वड़े दी भांवपूर्ण चमत्कारिक घर -म्रभावशाली चने हूँ ।. अधिकांश पद्य अलंकार प्रधान हूं उनमें छनेक स्थलों पर कल्पना की: '.चड़ान दरोंनीय है । ये पंद्य फुटकर पदों के रूप में तो चहुत सन्दरः इूं,पर प्रवन्ध में ' संव जंगद ठीक से मंद्दीं खपते । कंद्ीं कईी इनके कारण झनावश्यक विस्तार दो जाता है ओर कहीं-कई्ीं तो ये दूघ में केकर की तरदद खटकते हूं। -'. ० म्रबन्व काव्य की दृष्टिसि रामचन्द्रिका को सफल कान्य नददीं कद्दा जा सकता । पर्‌ इसका .यद्द झभिद्राय . कदापि . नहीं दे कि




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