पूजा के पेड़ पोधे | Pooja Ke Ped Podhe

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Pooja Ke Ped Podhe by रामेश वेदी - Ramesh Bedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलसी । १५ लिए कुछ परी चवा लेने चाहिए । जिन्हे पान चबाने की भादत है, वे भोजन के बाद तुलसीदल खाना भारम्भ करें; तो इससे उन्हे बहुत लाभ होगा । मसूडो और दातों को खराब करने के पान के ढुएुण से वे वचे रहेंगे । गावों में चूकि सव जगह पान सुख्भ नही होता, इसलिए जो दवाएं ताम्पूल-स्वरस के अनु- पान से देनी होता है, उन्हें देहाती वैद्य तुठुसीरस से अनुपान से दे दिया करते है । तुलसी के पत्ते पान का प्रतिनिधि द्रव्य वन सकने हैं । पान की तरह इन पर भी कत्या छगाकर सुपारी के साथ चवाने को आदत लका में देखी जाती है? जुकाम और नाक के रोग सिर का भारीपन, सिर दद, माधासीसी, मूगी तथा बेहोशी मे, जुवाम में, नाक की गन्घ लेने की शक्ति के नष्ट हो जाने मे गौर नाक के कीडो में तुलसी सिर मे सचित दोपो को निकालने के छिए दी जाती है । ताजे पत्तो के रस को नाक में डालने से नाक के वीड़े मर जाते है और नाक से दुगन्ध भानी वन्द हो जाती है । सुखी पत्तियों को पीसकर नस्वार की तरह सूधने से नाक से बहुत ज्यादा गदगी का सर्द बहते रहना रुक जाता हैं। यह नासाक़मियों को भी मारता है। बंगाली इस नस्वार को जुकाम मे बहुत वरनते है। नाक के रोगों की चिकित्सा में चकपाणि ने जिन विभिन्‍न पकार के तेलो का प्रयोग किया है, उनमे तुलसी भी पडती है। ये तैठ नाक की दुर्गन्ध को हटाते है। तुलसी के पत्ते, कटेंली की जड़, दन्ती मूल, बच, सोहाजने के बीज, पिप्पली, सधानमक, काली मिर्च और सोठ से विधि- इवक एक सेठ बनाया जाता है । जुकाम मे और दुगत्धित नाक




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