वाल्मीकि रामायण कोश | Valmiki Ramayana Kosha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दस अंशुधान ] [ बंशमाद्‌ झशुघधान, एक ग्राम का नाम है जिसके निकट गड्धा को पार करना दुस्तर जानकर भरत प्रास्यट नानक नगर में आ गये (रे ७१, ९9 । झंशुमान्‌ , सगर के पोच और असमच् के पुत्र का नाम है (१ ३८, रे; ७०१८) 1 यह अत्यल पराकमी, मुदुभापी ठया स्वेप्रिय थे । (१ ३८, र३) । राजा संगर की याज्ञा से यज्ञ-अश्व की रश्ञा का उत्तरदायित्व सुदूड और घगुर्षर महारयी अशुरानु ने स्ीरार किया (१ ३९, ६) । “राजा समर ने अपने पोन्न अशुमान से इस प्रकार कहा तुम शूरबीर, विद्वान्‌ तथा अपने 'ुवंजो के समान ही तेजस्वी हो । तुम अपने चाचाओ के पय का बनूसरण करते हुपे उस चोर का पठां छगाओं जिसने गेरे यह-भश्व ना अपहरण किया है अपने पिवामद की इस आज्ञा से अशुमान्‌ ने अपने घाचाओं द्वारा पथिवों के भीतर बनाये गये मागे का अनुसरण किया । वहाँ इन्हें एक «हायी दिखाई पडा जिसकी देवता, दानव, राकझषस, पिशाय, पक्षी और नाग आदि पडा कर रहे थे । अनुमान ने उस हाथी से अपने चाचाओ का समावार तथा कश्व चुरानेदलि का पता पद्धा 1 हाथी का आधीर्वाद प्राप्त करके भयुमानू उस र्यान पर पहुँचे जहां उनके चाथा (सगर-पुत) राख के देर हुये पढे थे । इन्होंने अपने यज्न-अश्द को भी समीप ही विचरण करते देखा । गरुड के परामर्य के अनुसार इन्होंने गड्जा के जल से जपने चाचाओ का तपंगर किया और तडुपरान्त अपने यज्ञ अरव को लेकर यतत पूर्ण करते के लिये पितामदट सगर के पास लौट आये [ ३ ) व पुरुपत्याघ, (रे बह, दइ) । 'महादेश (1 ४१, १५) । 'शुरशच डतवियरव पुर्वेसुन्योशसि तेचसा, (१ १, २) 1 *वीमेंवानू महातरा, (३ ४१, रु । “सगर की मृत्यु के पश्चात्‌ अजाउनों ने परम घ्मात्मा अशुपानू को राजा बनाया 1 अधुमान बस्यन्त प्रतापी राता




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