यजुर्वेद संहिता भाषा भाष्य [भाग-२] | Yajurved Samhita Bhasha Bhashya [Bhag-2]

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Book Image : यजुर्वेद संहिता भाषा भाष्य [भाग-२]  - Yajurved Samhita Bhasha Bhashya [Bhag-2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र० दिशाओं और १२० उपदिशाओं से राष्ट्र को रखा । ( २५ ) नाना प्रकार के जलों के इशन्त से, गुण भेद से नाना गुर्णों वाएी सेना और प्रताओं का ब्णन । ( २६ ) चात, धूम, अद्ध आदि नाना मेप की दशाओं की सुरमा के साय २ नायक के नाना कर्मों का वर्णन 1 ( २७ 9 अम्लि आदि पदायों बी साधना । ( २८-३१ फ नक्षत्र आदि के सुखकारी होने की भावना । (३२-२३ 9 यज्ञ से अन्न, ज्ञान, बल आदि की उत्पत्ति । तयोविंद्योइध्यायः ( प्र० २५६-३०१) (१) दिरिण्यगर्भ परमेश्वर का वर्णन, पक्षात्तर में राजा का दर्णन । ( * त प्यवस्था में यद्ध राजा की सूय॑ और वायु धर अन्तरिक्ष से तुढना। राजा का प्रजापति पद 1 ( ३ ) इंश्वर और राजा के सहान्‌ ऐश्वर्य का धर्णन । ( ४) ब्यवस्यादद्ध राजा का चन्द्र, अभि, नक्षयों से लु्ति महान सामध्यों का दर्गन 1 पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन । (५) दोपरद्ित सेजम्दी राला की नियुन्ि, पश्चान्तर में परमेश्वर की योग द्वारा उपासमा । पश्षान्तर में सूर्य का दर्णन । (६) रव में सुते अधों के समान दो नायकों की नियुक्ति । ( ७ ) राजा को सन्मार्ग पर लेजाने के लिये उसके स्ठोतू नायक विद्वान की नियुक्ति । ( ८ ) गायत्र, द्रेष्टभ, और ज्ञागत तीन छन्दों से चसु, रद और जादित्यों द्वारा स्तवन। घाझमण, इयिय, पैदय इन तीन द्वारराज्ञा की कीर्सि। हेजस्यी, शनिसान्‌ राजा को राष््रये थोग की आज्ञा । ( ९-१२ ) बह्मोच । प्रह्म और प्रभु राना की धाकि विषयक मझनोत्तर 1 सूर्य , अग्नि, भूमि, थी , अश, वि भौर रायि विपयर्श प्रभोगर 1 (१३) राजा की दाकति को पुष्ट करने के लिये सेनापति आदि पदारधिका- रियों का उत्तम उद्योग । ( १४) रघ अध के इ्टान्त से झझ्मा नाम विद्वान के कर्नप्य और स्थिनि का दर्णन । पक्षान्ठर में अप्पाम विवेदन ! (१४- १६ 9 ऐुच्चयंदान स्थामी और अध्यस में आत्मा का यर्गन । (१० फ थीन, चायु, सूर्य के च्टान्‍्त से दिजशाभिलयपी राजा के कर्द म्यों का टपदेश ।




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