मानव धर्म सार अर्थात संक्षिप्त मानव धर्म शास्त्र | Manav Dharam Sar Arthat sankshipt manav Dharma Shastra

Manav Dharam Sar Arthat sankshipt manav Dharma Shastra by शिव प्रसाद - Shiv Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानवधमंसार । हु (२४) इच्द्ियाणान्तु सर्वेषां यथेक॑ क्षरतीन्द्रिंयम ॥ तेनास्य क्षरति प्रज्ञा दतेः पात्नादिवोदकम्‌ £६ ( २४ ) सब इन्द्रियों मेंसे एक भी इन्द्रिय अपने विपय में लगी तो जीवकी बुद्धि जाती रहती है जैसे मशक में एक छेद होने से भी पानी निकल जाता है ॥ &४£ ॥ (२४) वंशे कृत्वेन्द्रियय्रामं संयम्य च मनस्तंथा ॥ एक ३ शा» 9. सर्वान्‍्संसा धयेदर्धानाश्षिसवन्‌ यो गतस्तनुमु १०० ( २४५ ) उपाय से सब इन्द्रियों को और मनकों बश करके जिसमें शरीर को दुम्ख न दोने पावे ऐसी रीति से सब शर्यो को सिद्ध करें ॥ १०० ॥ ( ९६ ) नाए्टः करयचिद्‌ बूयान्नचान्यायेन एच्छतः ॥ जानन्नपिहि मेधावी जडवर्लोक झाचरेत्‌ ११० (६ ) बिना पूछे कोई वात किसी को न कइना अन्याय से पूछे तो भी न कहना जानता हुआ भी चुद्धिमान लोक में जड़ की नाई रहे ॥ ११० ॥ (२७) शय्यासने 5धप्याचरिते श्रेयसा न समाविशेत्‌ ॥ शय्यासनस्थश्वेवेनं प्रत्युत्यायामिवादयेत्‌ १ १८




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