सत्यामृत (मानव-धर्मं-शास्त्र ) (दृष्टि -काण्ड) | Satymrit (Manav Dharm Shastra) (dristi Kand)

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Satymrit (Manav Dharm Shastra) (dristi Kand) by दरबारीलाल सत्यभक्त - Darbarilal Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य [७ वह यह सिद्ध कने की कोशिश करता है कि यह सब हमोर धर की चोरी है । अपुक देशके .मैज्ञानिक छोक जो आतिष्कार करते है वह सत्र हमर र मे श्ल दै उदे एकर उन टोगो ने आविष्कार कर ढिये हैं. | वे यह नहीं सोचते कि'अताब्दियो से जिन ग्रथों को तुम पढ़ रहे हो उने तुम्हे आज तक बिन आविष्कार की गप तकन बे दूसरे को वहा कह से मिछ गये ! ऐसे छोगो को अगर यह मानना पड़े कि नहीं यह सवर तष्टो परो मे नही दै तो बे उ सव को मानना अछीक्ार कर देंगे इस अकार यह खत्न-मोह सत्य-दर्शन में काधक होजायगा | कुछ জী কমা ल-मोह कुछ दूसरे तरह के शब्दों से प्रग्ट हुआ करता है | वे कह। करते हैं-.' विज्ञान की सब खोजे हमारी मा्यताओं का समन करती है| यह ख्वामात्रिक है कि विशेष अधिष्कार सामान्य मान्यता का समर्थन को पर वह सैकशे भ्रमो का उच्छेदन भी करता है |« सल्न-मोही उच्छेदन की बात पर तो ध्यान नहीं ठता और एकाव सामान्य वात को पक कर वह अपने गीत गनि रता है | उसे सल से प्रेम या मक्ति तह हती কিন্তু অলী হন का भेह होता है जोकि एक तरह से अहकार का परिणाम कहा जा सकता है | वह सथकों सत्य समझ कर नहीं मानता किन्तु अपना समर्थक समझ कर मानता है | अगर अपना सर्म्क नहीं है तो बह मानने को तैयार नहीं है | अपने प्रथ ` सगराय, मत आदि का गेह म खतो दै जो कि स॒त्य-दरगन में बावक है | बहुत से पढिति अर्थ पहिंले मान बैठते हैं फ़िर कोप और व्याकरण का कचूमए कना वरना রম সঙ से इच्छित अध खीचते रहते हैं | कोई मी वाक्य हे ने किसी ते किसी तह से अपनी बात पिद्ध करना चाहते हैं । इसाल्यि अवसर के बिना ही अल्कार, एकाक्षरी- জী आदि का उपयोग करते हैं और सींवे तया प्रक सगत अ को छोडकर कुटि अग निकाल करते हैं| यह मतमोह भी নী है | बहुत से लोग तो सिर्फ इसीलिये किसी साथ को अपनोने क्षो तैयार नहीं होते कि वह हमे नाम का नहीं है । सल्सम्रज के सिद्वान्तो को जान कर बहुत लोगों ने उन्हें माना पर वे इसी- हिये प्रगट में समर्थन न कर सके, न उसके अचार मे सहायता कर सके कि वे सिद्धान्त उनके सम्दाय के नाम पर न कहे गये थे । वे अपने सम्प्रदाय के नाम पर कुछ देषो फो म सहने को तैयार थे परु अगर उनके नाम की छाप न हो ते वे परम सत्य से भी हणा या उपेक्षा करने को तैयार ये | ऐसे छोग सत्य की खोज नहीं कर सकते | सत्य के खोजी को खल मोह जिसे नाममोह भी क्या जा सकता हैसे दूर रहना चाहिये । इस प्रकार दोनो प्रकार के गेह का त्याग करने में मुष्य में निषक्षता पैदा होती है। भगवान सत्य के दर्शन के छिंये निःपश्षता एक आवृक्षक गुण है। २ प्रीक्षकता भगवान सत्य के दर्शन की योग्यता के लिये दूसए आवश्यक गुण प्रीक्षकता है। जो आदमी पधक नही है बह सख वे दर्शन नहीं कर सकता ! वह किसी वात को माने या ने माने उसके मत का कु मूल्य नही है | तुम यह क्यो मानते हो ? क्योकि हमोरे वार मातुते थे इस उत्तर में कोर जान नहीं है | बाप कौ मृत्य से ही किसी बात को मानने मे मनुष्य होने का




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