बंकिमचन्द्र चटर्जी | Bankim Chandra Chatarji

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Book Image : बंकिमचन्द्र चटर्जी  - Bankim Chandra Chatarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ सन १०५७ ई० में बंकिम बाबू कलकतते गये थे । इतिहास के जाननेवालों को भजी भाँति विदित है कि उसी सन में भारत में बलवा इुआ था और बहुत से अंगरेजु तथा. भारत- बासी मार डाले गये .थे -। उन्हीं दिनों बंकिम बाबू बिना किसी प्रकार की चिन्ता के श्रेगरेजी पढ़ रहे थे.। बहुत लोगों ने लिखा है कि बंकिम बाबू उन दिनों बिल्कुल नहीं घबराते थे और प्रायः कहा करते थे कि अँगरेजों का राज्य यहाँ से जा . नहीं सकता ं सन १८५८ ई० में - कलकत्ता-विश्वविद्यालय का काम घ्रारंत होगया और यह भी घोषणा निकल गई कि पॉचवों बैल को बी० ए० की परीक्षा ली जायगी ! बहुत से साथी तो हिम्मत हार कर बैठ गये, परन्तु बंकिम बाबू ने तो परीक्षा मैं बैंडने का निश्वय कर ही लिया.। इसो निरचय के अजुसार वे बी० ए० की परीक्षा मैं निर्धार्ति पुरुतकों को तैयार .करने लगे । .बंकिम बाबू जिस काम में लग जाते थे, उसमें लग दी जाते थे । सन, १५८ ई० में केवल तेरह आदमियों ने परीक्षा दी । इस परोक्षा में विद्यासागर भी परीक्षक थे । तेरह विद्यार्थियों में स्यारदद फेल दोगये । केवल दो आदमी बो० ए० पास हुए, उसमें बंकिम बाबू प्रथम हुए । गज़ट में यह समाचार छुप गया.। उस. समय बंगाल के छोटे लार दालिडे-सादब थे । दालिडे-साहब ने बंकिम बाबू को अपने पास बुलवाया और उनसे बड़ी प्रसन्नता से मिले ।




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