लक्ष्मण शतक | Laxman Shatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ९ तहूं तेज को निधान करि कोप “समाधान, बीर लच्छन सुजान सुक्ति मारें कीरवान १२१॥ खाय घायन सभूर रहे बीर भरपूर दुद् सेन चकचूर भये सुरखि मिरान, कहूँ बानर बस्थ्थ' कह रेनचर्जुध्थ *, गिरे छुथ्थन पें छुध्थ गिद्ध गिद्ध कछु मान | कि विग्रह् बिलास जनु फूल्त पलास, धघरि ह्िस्मत हुलास होत मन न सलान, तहूं तेज को निधान करि कोप “'समाघान', बीर लच्छन सुजान सुक्ति कारें कीरवान ॥रे२ एके दौरि एक बीर नख दन्तन सरीर, करें कैयो खण्ड चीर जिम चीर चीर जान गल गज़हि कपीस डारे ऊपर गिरीस, भये रेनचरखीस दबे सीस कचरान । एके बूड़े सिधु नीर लगे रामालुज तीर, भये सेह रनघीर सट भीर «हरान, तहूँ तेज को निधान करि कोप “समाधान, बीर लच्छन सुजान सुक्ति कार कीरवान ॥र हे कहू दृथ्थिन पे हृथ्थि कहू रथ्थिन* पे रथ्थि, कहू पथ्थिन पे पथ्थि कपि कौणप मिलान, १ कुण्ड । २ राक्षस सेना । ३ रथी ।




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