रस - कलस | Ras Kalas

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Ras Kalas by अयोध्या सिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ३१२ ] कर इस प्रकार प्रयुक्त करता है कि उनसे भाषा की भाव-व्यंजक क्षमता, शब्द-राशि तथा विचित्रता बढ़-चढ़ जाती और उसमें विल- च्तणता भी आ जाती है वह उतनी ही उत्कृष्ट श्रेणी का कवि माना जाता है। प्रत्येक महाकवि अपनी प्रतिभा के प्रभाव से झपनी एक विशेष भाषा तथा शैली ( रीति-नीति ) लेकर साहित्य-त्तेत्र में अवतीण होता और जीण-शी्ण, प्रयोग-परिचय-च्युतत रूढ़िगत शब्दा- दिकों के च्वित-चवंणु-प्राबत्य से समुत्पन्न झनिष्ट अजीर्ण को छापने अजीणं ( नये निराले ) शब्दादिकों से दूर करने का प्रयत्न _ करता है । दूसरे लोग फिर उसी का झअलुकरण या अनुसरण करते और उसे अपना पथ-प्रदर्शक, '्औौरप्रधान प्रव्तक, मानने लगते हैं । उपाध्यायजी को भी हम इसी श्रेणी का महाकवि कह सकते हैं । भाषा झापकी सबधा सुव्यवस्थित, संयत 'ौर सुगठित है, शब्दावली सब प्रकार भावानुकूल, रसपरिपोषक और सबल है, कोई भी शब्द-शिथिल, अनावश्यक और केवल छन्द या पाद का. परिपूरक नहीं है । प्राय: झापने एक प्रधान श्यौर भावपूर्ण शब्द को लेकर उसीसे बननेवाले अन्य कई प्रकार के शब्दों का यथा- वश्यकता चारु चमत्कार-चातुय के साथ प्रयोग करके एक विशेष प्रकार का कोशल दिखलाया है ! सर्वत्र पद-मेत्री और वर्ण-मेत्रो अपने सुन्दर रूपों में पाइ जाती है। शब्दों के उक्त विशेष प्रयोग से बड़ी विलक्तणुता एवं विचक्षणुता अनुप्रासों के रूपों में प्रतिभात होती है। ... शब्दों के भिन्न-भिन्न प्रकाराकार वाले प्रयोगों से रचना-कला में रचयिता की प्रकामामिराम पटुता प्रकट होती है। यह दिखलाने का भी पूरा प्रयत्न किया गया है कि शब्द कितने भिन्न-भिन्न 'अर्थों में, कितने मिनन-मिन्न रूपों या ाकारों-प्रकारों से प्रयुक्त किया जाता या जा सकता है, इस काये में सफलता भी बहुत हुई है ।




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