आत्म - विकास | Aatma Vikas
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.36 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रात्म-घिकास १७
'घवराहट श्र रोगजन्य अशक्तता--दोनों से नाड़ी की गति बढ़ती है,
हृदय घड़कता है । इसीसे समकना चाहिए कि भय श्रौर श्रशवतता का
प्रभाव एक-सा होता है। जब मनुप्य झ्रपने को अशक्त पाता है, तभी
वह वेदना या वेदना की कल्पना से भयाक्ान्त होता है। छोटे बच्चे
अ्रणक्त होते है तभी तो वे बात-बात में डरकर चिल्लाते है । अरशक्त
होने पर दूसरों से ही नहीं, अपने से भी डर लगता है। क्षीणकाय व्यक्ति
सदेव डरता है कि कही उसके हृदय की गति न रुक जाए । शरीर श्र
मन से दुबल वच्चे कभी-कभी अपने चिल्लाने की झ्रावाज़ से चौकते
है।
““ श्रयोग्यता--ग्रयोग्यता के कारण मनुष्य को यह भय सदा बना.
रहता है कि कहीं कोई भूल न हो जाए श्रौर उस भ्रय से प्राय. भूल हो
ही जाती है क्योकि मन में भय रहने से रदी-सही योग्यता भी स्फुटित
नहीं होने पाती, मनुष्य की बोली तक बन्द हो जाती है ; वह हृकका-
वकका हो जाता है।
५ श्रकर्मरयता--हाथ पर हाथ रखकर बैठने से भय मुह खोलकर
सामने खडा हो जाता है। श्रालस्य से पुरुपार्थ क्षीण हो जाता है श्रौर
भयकर परिस्थितिया मनुष्य को दवा लेती है । उसको चारो श्रोर भय
के भरुत ही दिखलाई पड़ते है । काम के साथ भय निश्चित रूप से समाप्त
हो जाता है। जव मनुष्य एक दिशा मे चल पड़ता है तो भय उसके पैरो
के नीचे झ्रा जाता है। युद्धस्थलों में यह देखा गया है कि युद्धारम्भ के
पूर्व बहुत-से सिपाही भावी सहार की कल्पना से भयभीत रहते है,
परन्तु युद्ध के प्रारम्भ होने पर भीत सैनिक भी गोलियों की बौछार
मे निभेय होकर दौड़ता है। इसका कारण केवल यह है कि कर्मोद्यत
होने पर भय समाप्त हो जाता है ; तब मनुष्य अपनी मृत्यु से भी नहीं
डरता । शारीरिक श्रम से मन का भय निस्चय ही भागता है । प्रालस्य
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