रागनाथ रामायण | Rangnathan Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) आरुचयं से भर जाता है भर धीरे-घीरे वह उस दाक्ति-सपन्न व्यफ्ति के महत्त्व की अवुभूति करते लगता है। उसके उपरात उसकी प्रशसा करने की इच्छा सहज हो उसके मन में जागरित होती है । महान व्यविंत की प्रश्ासा करने की यह इच्छा ही भक्ति की पहली सीढ़ी हू । रंगनाथ रामायण के प्रतिभावान्‌ रचयिता ने अपनी रचना के हारा यही कार्य संपन्न किया । रंगनाथ रासायण घाल्सीकिरामायण का सात्र अनुवाद नहीं है । स्थूल रूप से चल्मीकिरामायण की कथा इसमें भा तो गई है, किन्तु उसके कवि ने बीच-बीच में ऐसे प्रसंग भी जोड़े हे, जो कदाचित्‌ उस समय तक जनता के बीच लोक-कथाओ के रूप में प्रचलित हो चुके थे । हभ नीचे ऐसे कुछ प्रसगो का उत्लेख करेंगे, जो वात्सीकि- रामायण में नहीं मिलते, यद्यपि उनमें से कुछ प्रसंग जंनग्रस्थो में सिलते हूं। कदाचित कवि ने वहीं से इन प्रसगो को लेकर अपनी रामायण में सम्मिलित कर दिया हो १. जंबुमाली का बत्तात, २. रावण से तिरस्कृत हो विभीषण का अपनी माता के पास जाना; ३ कैकेसी (रावण की साता) का रावण को हितोपदेका, ४. रावण का राम की घरूविद्या-कुदालता की अशंस। करना, ५. गिलहरी की भवित, ६. नागपाश में बद्ध होकर राम-लक्ष्मण के पास नारदजी का आना, ७. रावण के आगे सदोदरी का रास की सहिसा एवं शौय॑ की प्रदासा करना, ८८ दूसरी बार सजीवनी लाते समय हनुमान्‌ तथा मात्यवान्‌ का युद्ध, €. कालनेभि का वृत्तात, १०. सुलोचना का चृत्तात, ११. शुक्राचायं के आगे रावण का दुखड़ा रोना, १९. रावण का. पाताल-होस, १३. अंगद का रावण के समक्ष सदोदरी को बुला लाना, १४. रावण को नाभि में स्थित अमृत-वचल्श को सोखने के. निमित्त आम्नेयास्त्र का प्रयोग करने की घिभीषण की. सलाह, १४ लक्ष्मण की हंसी । उक्त प्रतगों सें जबुमाली का वृत्तांत, कालनेसि का बृत्तात, रावण के समक्ष अंगद का मंदोदरी को घसीटकर लाना, आर्नेयास्त्र का प्रयोग करने की विभीषण की सलाह आदि ऐसे हूं, जो मूलकथा की घटनाओं को अधिक तकं-सगत सिद्ध करने के निभित्त जोड़े हुए प्रतीत होते है। रावण से तिरस्कृत होकर विभीषण का अपनी साता फे पास जाना, कंकेसी का हितोपदेश और सुलोचना का वृत्तात आदि रावण के परिवार के लोगो के चरित्र पर प्रकाश डालने के साथ ही साथ इस ओर भी इगित करते है कि रावण भूत-प्रेतो का वद्चज एवं भूत-प्रेतो का राजा नहीं था, किन्तु एक दिलक्षण परिवार में उत्पन्न हुआ विदिष्ट व्यदित था । रावण का, राम की धनुविद्या की कुदालता की प्रदासा करना, मसंदोदरो का रावण के समक्ष श्रीराम को महिसा एव पराक्रस को प्रदांसा करना, शगिलहुरी का वूत्तात आदि प्रसंग राम के उस लोकोत्तर व्यक्तित्व पर प्रकादा डालते है; जो शत्रुओ की भी प्रदांसा प्राप्त करने की क्षमता रखता था । साथ ही साथ, वे रावण तथा मंदोदरो के चरिन्न पर भी प्रकाश डालते हूं । उक्त प्रसगो के अलावा इस रासायण सें यत्र-तन्र ऐसे वर्णन भी मिलते है, जो वात्मीकिरामायण में नहीं मिलते, किन्तु जिन्हें कवि ने वैदिक धर्म में लोगो की निष्ठा बढाने के निमित्त जोड़ा है ।




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