पदम् पुरम भाग 1 | Padam Puran Part - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना पष्ण राजा जनककी चिदेद्दा रानीके एक पुत्री सीता तथा एक पुत्र भामण्डछ उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते ही प्रसूतिग्रहसे एक पूर्वंभवका वैरी भामण्डढछका अपहरण कर छेता है । अपदरणके वाद भामण्डल एक विद्याधरकों प्राप्त दोता है. । उसीके यहाँ उसका छाठन-पालन होता हे । नारदकी कृपासे सीताका चिन्नपट देखकर भामण्डलका उसके प्रति अनुराग बढ़ता है । छलसे जनकका विद्याघर छोकमें बुलाया जाता है । भामण्डढके पिताके आश्रह करनेपर भी जनक उसके लिए पुत्री देना स्वीकृत नहीं करता है. क्योकि वह पहले राजा दृशरथके पुत्र रामको देना स्वीकृत कर चुका था । निदान; विद्याघरने शत रखी कि यदि राम यह चज्रावत धनुप चढ़ा देगे तो सीता उन्हें प्राप्त होगी अन्यथा हम अपने पुत्रके छिए बलात्‌ छीन लेंगे । विवश होकर लनकने यह शर्ते स्वीकृत कर छी । स्वयंवर हुआ और रामने उक्त धनुप बढ़ा दिया | सीताके साथ रामका विवाह हुआ । दशरथ विरक्त हो रामको राज्य देने लगे । तय केकयीने राउ्य-भं डारमे सुरक्षित वर मॉगकर भरतको राज्य देनेकी इच्छा की । यह सुनकर राम-लदमण सीताके साथ दक्षिण दिशाकी ओर चले गये । वीचसे कितने दी त्रस्त राजाभोका उद्धार किया । केकयी और भरत चनमे जाकर रामसे वापिस चलनेका अनुरोध करते हें पर सब व्यर्थ होता है. । [३] बन-अमण-- इसमे राम-लेदमणके अनेक युद्धांका वर्णन है । कद्दीं वज्रकर्णकों सिंद्दोद्रके चन्द्रसे बचाते है तो चालखिल्यकों म्छेच्छ राजाके कारागृहसे उन्मुक्त करते है; कभी नत्तकीका रूप धरकर भरवतके विरोधमे खड़े हुए राजा अतिवीयेका सान-मदेन करते है। इसी वीचसे लददमण जगद- जगदद राजकन्याओके साथ विवाह करते हैं । दण्डक बनमे वास करते हैं, मुनियोको आद्दार दान देते हैं तथा जटायुसे सम्पक प्राप्त करते हैं । [४] सीताहरण और खोज-- चन्द्रनखा तथा खरदूषणका पुत्र शम्बूक सूयह्ास खड्ग़को सिद्धिके छिए वारद्द वे तक बॉसके भिड़ेमें बैठकर तपस्या करता है । उसकी साधना स्वरूप उसे खड्न प्रकट हुआ । लद्मण संयोग वश वहीँ पहुँचते हैं और शम्वूकके पहले ही उस खन्गको हाथमे लेकर उसकी परीक्षा करनेके लिए उसी चंशके भिड़े पर चलाते हैं जिसमें शम्बूक बैठा था; फछत: शम्बूक मर जाता है | जब चन्द्रनखा भोजन देनेके लिए उसके पास आई तब उसको मृत्यु देखकर बहुत विलाप करती है। निदान वह राम लद्मणकों देख उनपर मोहित होकर प्रेम-प्रस्ताव रखती हैः पर जब उसे सफलता नद्दी मिलती है तब चापिस लौट पत्तिके पास जाकर पुत्र के मरनेका समाचार सुनाती है । खरदूषणके साथ लद्मणका युद्ध होता है; खरदूपणके आह्वानपर रावण भी सहायता के लिए आता है । बीषवमे रावण सीताकों देख मोहित दोता है और उसे अपहरण करनेका उपाय सोचता है । वह विद्यावलसे जान छेता है कि लद्मणने रासको सद्दायतार्थ घुलानेके लिए सिद्दनादका संकेत बनाया है । अत. रावग प्रपश्चपूरण सिहदनादसे रासको लद्मणके पास भेज देता है और सीताको अकेली देख हर ले जाता है । सीता दरणके वाद राम बहुत दुःखी होते हैं । सुप्नीवके साथ उनकी मित्रता दोती है । एक साहसगति नामका चिद्याघर सुम्रीवका मायामय रूप बनाकर सुमीवकी पत्नी तथा राज्यपर अधिकार करना चाहता है । राम उसे मारते हैं; जिससे सुपीव अपनी पत्नी तथा राज्य पाझर रामका भक्त दो जाता है। सुप्रीवकी आज्ञासे विद्याघर सीताकी खोज करते हैं । रत्नजटी चिद्याघरने बताया कि सीताका हरण रावणने किया है । उस समय रावण बड़ा घलवान्‌ था इसलिए सुम्रीच आदि विद्याघर उससे युद्ट करनेके लिए पीछे हटते हैं पर उन्हें अनन्तवीय




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