लोक - परलोक का सुधार भाग - १ | Lok - Parlok Ka Sudhar भाग - १

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धनका सदुपयोग ः श्र खेल पुचारु रूपसे सम्पन्न होते रहेंगे । मान-अपमान, स्तुति-निन्दा, हँसना-रोना सभी भगवान्‌की ढीछाके मघुर अट्ठ हो जाएँगे । इस प्रकारका अभ्यास करके देखिये । कुछ ही दिनोंमें अपू्व झान्ति और आनन्दका अनुभव होगा । पाप-ताप तो अपने-आप ही दूर चले जायँगे | (५ ) धनका सढुपयोग आपका.पत्र मिले बहुत दिन हो गये । मैं जवाब नहीं ठिख सका; क्षमा कीजियेगा | आपके पत्रको मैंने ध्यानसे पढ़ा । उसमें कुछ झुँझलाहट-सी प्रतीत होती है । अभावग्रस्त छोग आपको सहायताके लिये तंग करते हैं, इससे आपको ऊबना और झँझलाना क्यों चाहिये £ प्यासे प्राणी पानीके लिये जलाइयके पास ही तो जाते _' हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि आप जगतकें सच प्राणियोंका दुःख दूर नहीं कर सकते । सबका तो दूर रहा, एकका भी दुःख दूर करना आपकैंःहमारे हाथकी वात नहीं है । प्राणियोंकि दुःखों- का अन्त तो भगवल्क़ृपासे प्राप्त ज्ञानसे ही होगा | हमारा तो इतना ही काम है कि जव हमपर कोई घिपत्ति आती है, तत्र दम जेंसे ' अपनेको बचानेके लिये हाय-पेर हिलाते हैं, वेंसे ही अपने सामने जब किसी प्राणीपर विंपत्ति आवे तो हमें अपनी शक्तिमर हाथ-पैर दिलाने 'वाहिये | सब प्राणी आपके पास आते ही कहाँ हैं ? जो थोड़े-से आते हैं, वे भी ( सम्भव है ) आपकी हैंसियतसे अधिक व




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