लोक - परलोक का सुधार भाग - १ | Lok - Parlok Ka Sudhar भाग - १
श्रेणी : अपराध / Crime
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.45 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धनका सदुपयोग ः श्र
खेल पुचारु रूपसे सम्पन्न होते रहेंगे । मान-अपमान, स्तुति-निन्दा,
हँसना-रोना सभी भगवान्की ढीछाके मघुर अट्ठ हो जाएँगे । इस
प्रकारका अभ्यास करके देखिये । कुछ ही दिनोंमें अपू्व झान्ति
और आनन्दका अनुभव होगा । पाप-ताप तो अपने-आप ही दूर
चले जायँगे |
(५ )
धनका सढुपयोग
आपका.पत्र मिले बहुत दिन हो गये । मैं जवाब नहीं ठिख सका;
क्षमा कीजियेगा | आपके पत्रको मैंने ध्यानसे पढ़ा । उसमें कुछ
झुँझलाहट-सी प्रतीत होती है । अभावग्रस्त छोग आपको सहायताके
लिये तंग करते हैं, इससे आपको ऊबना और झँझलाना क्यों
चाहिये £ प्यासे प्राणी पानीके लिये जलाइयके पास ही तो जाते
_' हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि आप जगतकें सच प्राणियोंका
दुःख दूर नहीं कर सकते । सबका तो दूर रहा, एकका भी दुःख
दूर करना आपकैंःहमारे हाथकी वात नहीं है । प्राणियोंकि दुःखों-
का अन्त तो भगवल्क़ृपासे प्राप्त ज्ञानसे ही होगा | हमारा तो इतना
ही काम है कि जव हमपर कोई घिपत्ति आती है, तत्र दम जेंसे
' अपनेको बचानेके लिये हाय-पेर हिलाते हैं, वेंसे ही अपने सामने
जब किसी प्राणीपर विंपत्ति आवे तो हमें अपनी शक्तिमर हाथ-पैर
दिलाने 'वाहिये | सब प्राणी आपके पास आते ही कहाँ हैं ? जो
थोड़े-से आते हैं, वे भी ( सम्भव है ) आपकी हैंसियतसे अधिक
व
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