अभिनन्दन ग्रन्थ | Abhinandan Granth
श्रेणी : संस्मरण / Memoir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.29 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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की च्िकित्सा-्रणाली में शरीर-मूलक वात, पित्त कफ तथा शोण्नि का सिद्धान्त सर्दमान्य हु
जकोलियर मददोदय ने तो भारत को चिकित्सा पद्धति में एशिया तथा यूरोप का 'मम्रगस्य माना
है। लंका-द्वीप, वहाँ के नागर्कि तथा चहाँ की सरकार '्याज भी 'ायुवेद्फि विस के लिए,
प्रयरनशील हैं 1. लंक्रासरकार कोलम्दों कॉलेज श्वफ् डरिडजेनस मेंडीसन को सुसंगदिति कर
रही है 'और जाफना में उसने एक सिद्ध-कॉलेज स्थापित किया हैं । लाल दीन यी चर्समान
सरकार ने भी शंघाई, केंस्टन, नानकिंग और चुगकिंग में पुरातन 'झा्युप्रंदिकि पद्धति को
प्रोत्साइन देने के लिए कई 'रपताल खोजे हैं । पिंग फें वहुन से झग्पतालों में बैद्यहू--
विद्या के विशेषज्ञों को रखकर उनसे परामशे लिए गए हैं ।
'अमेण्कि के डॉ० 'झरेक्जेरडर मार्की ने खुने शब्दों में यह घोषित किया हि कि में जद
भी जाता हूँ, चहाँ ही 'झायुवंद की उदृप्रता की वात करता हूँ 1 एलोरेडिक चिपिस्सा से एक,
रोग छाराम होकर नया रोग उतन्न हो जाता है। पश्चात्य चिफित्सफ एलोपेथी रे मंयकर,
चिपले चिपेले: कीटाह नाशक द्रव्यों के दु्पस्णिम के दुप्पर्णिम को ने जानकार 'अपये रोधियां का जीवन -जूरे में
डाला काने हूं”. जनभ्ुति हैं कि सिकन्दर मदन जय भारत '्ाया था तथ च्दाँ के ये सो
चिशेपतः सपदंश के चिकित्सकों से प्रभावित हो कर उन्हें ध्पने साथ ले गया था ।
वर्क सुध त; चाग्मट्र, घन्वन्तरि 'ादि 'आायुंवद के ग्रचत्तेकों द्वारा प्लदित, पुष्पित या
श्यायुर्देदिक-पद्धति नाड़ीक्षान का भी सम्यकू दोथ करानी हैं जो 'झन्यन्र 'मप्राप्य है। नाद़ी
की गधि से छायुर्वेद में सच रोने की 'सलग-छन्नन जानकारी च्पलव्य हो सकती ह; पता रोग
के निदान में 'मसाघरण सहायता मिलती हैं । सुध्त संहिता में संपूर्ण शरीर थििन एस
चिशट्रूप में दिग्दर्शित है।इस पद्धति की सफलता से प्रभावित दोदर घरफ भारतीय राज
नैतिक कर्णाधारी न इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की हू जिसके छंद उदाहरण टटूधून पर दना
घ्यप्नासंगिक न होगा ।
“से यद मानता हूं कि आायुवेद में वड़ी क्ति हूं। उसके पास 7 सी 'पधियां दि जिनका
लोग 'झथी सुफायला नहीं कर सकते | मे विर्वास है तीघ ही समय पाप्गा जप लोग
व्यायुवेंद को 'झपनाएंगे ।
नराउेदससार ।साधपि!
'घमयुचंद को वंज्ञानिक चिकि्त्सा-पद्धति कदना घोर सूरत है, 1
जचाएर्लाल नए वप्रधानगधी'
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