गाँधी वध की परीक्षा | Gandhi Vadh Ki Pariksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांधीवाद “'गांधीवाद नाम की कोई वस्तु है ही नहीं, न में अपने पीछे कोई सम्प्रदाय छोड जाना चाहता हैँ। मेरा यह दावा भी नहीं कि मैंने किसी नये तत्त्व या सिद्धान्त का झाविष्कार किया है । मैंने तो सिफ॑ जो शाश्वत सत्य हैं, उनको 'झपने नित्य के जीवन श्रौर प्रतिदिन के प्रश्नों पर श्पने ढंग से उतारने का प्रयासमात्र किया है । सुझे दुनियां को कोडे ने चीज़ नहीं सिखानी है । सत्य और घ्रट्टिंसा झनादि काल से चले श्राये हैं * ** ” » इसी सत्य घर झ्रहिसा को चरितार्थ करना मद्दात्मा गांधी श्र उनके भअनुयाइयों की सस्थाओं का आदर्श और उद्देश्य है । इस विषय सें महात्मा गांधी आगे कहते हैं:-- “ऊपर जो कुछ मैंने कहा है, उसमें मेरा सारा तत्व ज्ञान--यदि मेरे विचारों को इतना बढा नाम दिया जा सकता है, तो--समा जाता है। श्राप उसे गांधीवाद न कहिये, क्योंकि उससें वाद जैसी कोई बात नहीं है ।” +» महद्दात्मा गांधी के शब्दों से ही यदि गांधीवाद को समकना हो तो सत्य श्रौर हिंसा की साधना ही मनुप्य का उद्देश्य है । गांधीवाद का मत है, व्यक्तिगत रूप से सत्य और अर्दिसा की साधना से मनुष्य घ्याध्यात्मिक उन्नति कर व्यक्तिगत पूर्णता प्राप्त करता है और सामूद्िक « अपने कार्य-क्रम के सम्बन्ध में मद्दात्मा गाधी के विचार, 'हरिजन बच २६-३-१६३६ ।”




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