चेखव : जीवन और दर्शन | Chekhav : Jeevan Aur Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; के... आति-जाते है। लेकिन जोला ओर चेसवम पक है । मुझे तो समसे ऑधिक आकर्षित चेखवकी घन बातने किया हे न तो उसमे तीसापन है और न उसके पास 'विलेन' दे । व्यंग्य ओर शास्य ससारके किसी भी लेखकसे उसके पास कम हे; यह कहना गलत होगा, लेकिन उसका व्यय तिलमिलाने चाला व्यग्य नहीं, रुलानेवाला व्यग्प ह--जैसे 'दिलका दद' या 'दसरा शमादान' कहानी में । दर जब वह टेँसता £ तो बिना सती देषके जी खोलकर हँँसाता है जैसे, “द्पसाधी”, 'शिरगिट” इत्यादि कहानियोंमे ! सचमुच कितने छोटे-छोटे विषय पर उसने कटानियाँ लिखी है--लेकिन कितनी प्रमावशाली दर रमरणीय ! उसकी 'प्रियतमा' कहानी की द्यालोचना करते हुए टॉल्सटायने लिखा था-“'द्रद्वितीय चुदल दर हास्यकें बावजूट, मेरी द्ॉखोीमे तो कमसे कम इस द्ाश्वयजनक कहानी के कुछ टिस्सॉंको पढ़कर विना द्ॉयू आये नहीं रहे ।”* उसका स्वयं व्चिर था कि आप संसारकी हर चोजके साथ चालाकी श्र घोखा कर सकते हैं लेकिन कलाकें सामने तो आपको सुक्त हृदयसे ही ना ही होगा । या “साहित्य एक ऐसी वेध पत्नी है जो द्ापसे पूरी ईमानदारी की मॉग करती है ।” श्रलेक्जेन्द्रको उसने पत्र लिखा था-- “पलेखककी मौलिकता उसकी शेलीमें ही नहीं, उसकी आ्ास्थाद्रों श्रोर उसके विश्वासोंके रूपमें भी ्रपने आपके श्रमिव्यक्त करती हैं । * उसके जीवन कालम स्कैविशेव्स्की श्रौर मरते ही शुस्तोव जैसे श्रालो- स्रकोने उसके विपय-पात्रोंके ऑत्यन्त हो साघारण और उपेक्तणीय होनेकी शिकायत की है । शुस्तावने तो उसकी सहाय स्ृत्योन्सुख कातरताको ही उसकी स्वनाओं--उसके सभी पात्रो--का मूल मानकर उसके साहित्यफी व्याख्या कर टाली है । अपने प्रसिद्ध ठेखमें वह लिखता है “पहालॉकि ऐसे भी आलोचक थे जो कहते ये कि वद कला कलाके लिये के सिंद्धान्त का गुलाम था और उन्होंने उसकी तुलना एक उडते हुए; निश्चिन्त पक्षीसे




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