अर्ध कथानक | Ardha Kathanak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्७ सेवामें ना घुसे । आदमी चलते पुरजे थे, किसी तरदद बनारसके करोड़ी वन गए सौर दरवार छोड़ दिया । बदायूनीके अनुसार आप एक वेद्यापर फिदा थे । आगरेसे रवाना दोनेके पहले आपने उसे काफी रम्म पिलाई और एक सरपरस्त भी सुकरर कर दिया । जब वेश्याओंके दारोगाने बादशाह संलामतसे इस बातकी शिकायत की, तो गोलाला वनारससे पकड़ मैंगाए गए । इसके वाद उनपर क्या शुजरी इसका पता नहीं । पर बनारसी हथकडे दिखलाकर निकल भागे होंगे, इसमें सन्देद नदीं ऐसी दी मजेदार चातोंसे चदायूनीकी तवारीख मरी पड़ी है नो उनके आत्मचरितके अग हैं, इतिहासले उनका सम्बन्ध नहीं । पर बनारसीदासका आत्मचरित उपर्युक्त आत्मचरितोंसे निराला है । उसमें न तो वाणभट्टका सूद्म चित्रण है न बिंट्दणकी खुशामद । झायद फारसी उन्होने पढी नहीं थी, इसलिए; वार इत्यादिकी उनके आत्मचसितम वर्णित बादशाही आन चान शानका उसमें पता नहीं न गा एक अध्यातमी और व्यापारी थे। इन दोनोंका क्या सलोग, पर अध्यातमसे तो रोटी चलनेकी नहीं थी, व्यापार करना जरूरी था, पर उनके आत्मचरितसे पता चलता है कि वे कच्चे व्यापारी थे । समय समय पर उनकी व्यापारिक बुद्धि ऊपर उठनेकी कोशिश करती थी, पर उसके अतरमानसर्म अध्यातमकी बहती घारा उसे दत्ा देती थी । पर वे थे आदमी जीवटके, और जीवनकी कठिनाइयोसे वे हँसकर मिडनेको सदा तयार रहते थे । अगर उनके ऐसा कोई दूसरा शानी उस युग अपना आपचरित लिखता तो वद्द आत्मज्ञान और दिदायतोंसे इतना त्रोझिल हो उठता कि छोग उसकी पूजा करते, पढ़ते नदीं। एक सच्ची आए्म- कथाकी विशेषता है आत्म ख्यापन, आत्म-गोपन नहीं । वनारसीदासने अपनी कमनोरियों उधेड़ कर सामने ग्ख दी हैं और उनपर खुद हूँसे हैं ओर दूसरोंको हँसाया है । अध विश्वासोंकी, जिनके वे खुद शिकार हुए; ये; उन्होंने बड़ी दी खूवीसे हँसी उडाई हे | १७ वी सदीके व्यापारकी चलस केंसी थी, लेन देन कैसे होता था, कारवा चलनेमें किन किन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता था, इन सब वातॉपर अधघ कथानकसे नितना प्रकाग पता है उतना किष्ठी दूसरे खोतसे नदीं । यात्राके समय अनेक विपत्तियोका सामना करते हुए भी चनारसीदास अपने हसोड़ स्वभावको भूले नहीं और आफतोंमें भी उन्ोंने दवास्यकी सामग्री पाई। बनारसीदास अध्यामती और व्यापारी दोनों थे;




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