मुगल दरबार भाग - ४ | Mugal Darbar Bhag 4

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : मुगल दरबार भाग - ४  - Mugal Darbar Bhag 4

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasad

Add Infomation AboutMunshi Deviprasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ ले. होने का समाचार सिखा । वह फु्ती खे वादशाद की सेवा में पहुँच कर ,खाँ की पद्यी, झंडा बच डंका पाकर संमानिव हुआ । इसके अनंतर अद्दस जाँ के साथ माठवा विजय करने पर तियत हुआ । जब दूठे वप अद्दम खाँ छोका दरबार घुढा छिया गया तर मुझा को मालवा का शासन स्थायी रूप सें मिछा । बाजुवहदादुर की इससे निभ ले सकी इसलिए ७वें वर्फें सें अवाद की सोमा पर सेना एकन्र कर .उसने विद्रोद कर दिया । पीर मुदस्मद ने सेना सुसल्नित कर चस्तपर चढ़ाई कर दो और थोड़े दो भ्रयत्त पर उसे परास्त कर भगा दिया । इसके बाद बीजागढ़ दुर्ग ठेने का साइस कर उसे चढपूवक एतमाद खाँ से, जो वाजबददादुर की ओर से चसका दुर्गाध्यक्ष था, छीन लिया और साम्राव्य सें मिछा लिया । खानदेश के शात्रक सीरान मुहम्मद शाह फारूक़ी ने चाज़चददादुर की सद्दायता देने की तैयारी की इसलिए पीर मुद्दम्मद खाँ एक सदर अनुभवी सेनिकों को छेकर धावा करते हुए एक रात्रि में घुद्दॉनपुर से चालीस कोस पर पहुँचा क्योंकि वद्द दुर्ग आासीर में था और उसे लूट लिया । इसके वाद कतलढआस की भाज्ञा दी, जिससें बहुत से सैयदों वधा विद्वानों को अपने सासते गदूस क्टवा दी । बहुतनसा लूड लेकर जब लौटते समय इसनें सुना कि वाजुवहदादुर सार्ग में यहुत पास सा गया दै तय इसने युद्ध की सैयारी की ! -छोगों ने युद्ध की संमति न देकर पदले हंडिया चलना उचित चतछाया पर पोर सुददस्मद खाँ की चुद्धि त्रथा लीति साइस से दुबे गई थी इसलिए इसने छुछ न सुन कर युद्ध ही का चिश्वय किया । साथियों




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now