विवेक ज्योति | Vivek Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.63 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री माँ सारदा देवी के सस्मरण १
से खाने-पहिनने-रहने की समस्या तो रही ही नहीं
बल्कि अध्यात्म-राज्य में प्रवेश के लिए भी उसमे प्रबल
आग्रह बौर साधन-भजन की निप्ठा दिखायी देने
लगी । कालान्तर में क्रम से ब्रह्मचयें और सच्यास
ग्रहण कर उसका जोवन साथक हुआ ।
माँ के एक और भक्त-सन्तान कुलगुरु से दीक्षा
लेकर दीघंकाल से साधन-भजन मे रत थे, फिर भी
शान्ति नहीं पा रहे थे । श्री ठाकुर के प्रति उनकी
अगाध भक्ति ओर विश्वास था । ठाकुर के शिष्यों,
विगेषकर श्री हम' के साथ उनका विशेष परिचय था
एवं श्री 'म' भी उनसे विशेष स्नेह करते थे । अनेक
घात-प्रतिघातो ने उनका जीवन अस्तव्यस्त कर दिया
था । अन्त में निरुपाय हो कष्ट उठाते हुए वे जयराम-
वाटी गये और माँ के चरणों मे शरणापन््न हुए । जब
माँ को पता चला कि उनकी दीक्षा हो चकी हे, तो
वे पहले तो उन्हें दीक्षा देने के लिए राजी नहीं हुई ।
पर वाद में उनके आग्रह और असहाय अवस्था को
वात जान माँ ने कृपापूर्वेक पुनः दीक्षा दी । माँ के
दर्शन, कृपा और स्नेह पाकर उनका हृदय भानन्द से
भर उठा | जयरामवाटी और कामारपुकुर में श्री
ठाकुर के समय के लोगो से मिलकर और उनकी
लीलाभो से जुड़े स्थलों के दर्शन कर वे विशेष पुलकित
हुए । उनके जीवन में स्पष्ट परिवर्तन दिखलायी
पडा--पहले वे कोई छोर न पा रहे थे, पर अब उन्हे
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