Book Image : विवेक ज्योति  - Vivek Jyoti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री माँ सारदा देवी के सस्मरण १ से खाने-पहिनने-रहने की समस्या तो रही ही नहीं बल्कि अध्यात्म-राज्य में प्रवेश के लिए भी उसमे प्रबल आग्रह बौर साधन-भजन की निप्ठा दिखायी देने लगी । कालान्तर में क्रम से ब्रह्मचयें और सच्यास ग्रहण कर उसका जोवन साथक हुआ । माँ के एक और भक्त-सन्तान कुलगुरु से दीक्षा लेकर दीघंकाल से साधन-भजन मे रत थे, फिर भी शान्ति नहीं पा रहे थे । श्री ठाकुर के प्रति उनकी अगाध भक्ति ओर विश्वास था । ठाकुर के शिष्यों, विगेषकर श्री हम' के साथ उनका विशेष परिचय था एवं श्री 'म' भी उनसे विशेष स्नेह करते थे । अनेक घात-प्रतिघातो ने उनका जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था । अन्त में निरुपाय हो कष्ट उठाते हुए वे जयराम- वाटी गये और माँ के चरणों मे शरणापन्‍्न हुए । जब माँ को पता चला कि उनकी दीक्षा हो चकी हे, तो वे पहले तो उन्हें दीक्षा देने के लिए राजी नहीं हुई । पर वाद में उनके आग्रह और असहाय अवस्था को वात जान माँ ने कृपापूर्वेक पुनः दीक्षा दी । माँ के दर्शन, कृपा और स्नेह पाकर उनका हृदय भानन्द से भर उठा | जयरामवाटी और कामारपुकुर में श्री ठाकुर के समय के लोगो से मिलकर और उनकी लीलाभो से जुड़े स्थलों के दर्शन कर वे विशेष पुलकित हुए । उनके जीवन में स्पष्ट परिवर्तन दिखलायी पडा--पहले वे कोई छोर न पा रहे थे, पर अब उन्हे




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