मराठी और उसका साहित्य | Marathi Aur Unka Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मराठी भाषा उद्गम श्रोर विकास १७ डॉ० तुलपुले ने ईस्वी ११०० से १३५० तक की मराठी का सिंशेष श्रष्ययन क्या है । £८३ ईस्वी ( श्रवणुबेलगुल ) के शिला-लेख से १२६७ ईस्वी तक के शिला-लेख श्रौर ताम्न-अटों की मापा का दिचार किया है ! इस च्लल-खण्ड मो उन्होंने यादव-काल माना है । दॉ० काने छे वनुसार इस काल के एरू दी ग्रन्थ में कई मापा-रुप मिलते हैं । इस कारण से ग्रन्थ-ए्दना के काल की मापा फौन-सी हैं यह कहना कठिन है । मणदी के श्राथकवि मुकुन्दराव का समय ११२८ से १२६८ ईस्वी माना गया है । उसके ग्रन्थ मूलमापारूप में नहीं मिलते । मराठी की फालिक श्रवस्याश्रों का पूरा शान “श्ानेश्वरी” से शुरू होता है । यों १३ वीं शती से यह स्वरूप निश्चित है। मराठी का पहला प्रान्यिक साय ११६६ में सोमेश्वर की “श्रभिलपितार्थ-चिन्तामणि* के मराठी पढों हें पाया जाता है । ईस्वी १०१२ में यादवों की सत्ता समाप्त हुई । देवगट का राय मुसलमानी राय्य से जोड़ा गया । यवनों की मापा का मराठी पर भी प्रभाव पड़ा, पर बह सरकारी दरवारी मापा तक ही रहा । साधारण लोगों दी भाषा श्रौर वाइमय पर यावनी का प्रभाव नहीं के घरावर हुश्रा । चॉमा कवि का उदादरण ( ईस्वी १३०० से १४०० के घीष्व ) केवल मूल रूप में उपलब्ध हू | पन्द्रदरवी शती में दुगदिवी का श्रकाल ( ई० १४६८ से १४७५. ) मददाराष्ट्र से पड़ा श्र इस श्रकाल के कास्ण कई लोग श्पना देश छोड़- कर दाहर गये । वापिस श्राते हुए परप्रातीय भायाश्यों ने सस्झार दे दपने साथ ले श्राए । ज्ञानेश्वर श्रीर एकनाय मे काल की भाषाओं के दी का रूप इस शत्ती से मिलता है । सोनद्वों शती में मापा श्रघिर हिंधर हुई । मद्दानुमाव मसदी बे पंवाद शरीर श्रकगान्स्तिन तर ले गये | फारसी का प्रभाव मरादी पर शझधिक होने लगा। सबददो शतों में शिव-दाल में फारसी का श्रावमण हृटमूल टू । पुर्तंगालियों से मी सम्बन्ध इसी काल में हुश्रा श्र लद्दादी शरीर




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