मराठी और उसका साहित्य | Marathi Aur Unka Sahitya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.33 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मराठी भाषा उद्गम श्रोर विकास १७
डॉ० तुलपुले ने ईस्वी ११०० से १३५० तक की मराठी का सिंशेष
श्रष्ययन क्या है । £८३ ईस्वी ( श्रवणुबेलगुल ) के शिला-लेख से
१२६७ ईस्वी तक के शिला-लेख श्रौर ताम्न-अटों की मापा का दिचार
किया है ! इस च्लल-खण्ड मो उन्होंने यादव-काल माना है । दॉ० काने छे
वनुसार इस काल के एरू दी ग्रन्थ में कई मापा-रुप मिलते हैं । इस कारण
से ग्रन्थ-ए्दना के काल की मापा फौन-सी हैं यह कहना कठिन है ।
मणदी के श्राथकवि मुकुन्दराव का समय ११२८ से १२६८ ईस्वी
माना गया है । उसके ग्रन्थ मूलमापारूप में नहीं मिलते । मराठी की
फालिक श्रवस्याश्रों का पूरा शान “श्ानेश्वरी” से शुरू होता है । यों १३
वीं शती से यह स्वरूप निश्चित है। मराठी का पहला प्रान्यिक साय
११६६ में सोमेश्वर की “श्रभिलपितार्थ-चिन्तामणि* के मराठी पढों हें
पाया जाता है ।
ईस्वी १०१२ में यादवों की सत्ता समाप्त हुई । देवगट का राय
मुसलमानी राय्य से जोड़ा गया । यवनों की मापा का मराठी पर भी प्रभाव
पड़ा, पर बह सरकारी दरवारी मापा तक ही रहा । साधारण लोगों दी
भाषा श्रौर वाइमय पर यावनी का प्रभाव नहीं के घरावर हुश्रा । चॉमा
कवि का उदादरण ( ईस्वी १३०० से १४०० के घीष्व ) केवल मूल रूप में
उपलब्ध हू |
पन्द्रदरवी शती में दुगदिवी का श्रकाल ( ई० १४६८ से १४७५. )
मददाराष्ट्र से पड़ा श्र इस श्रकाल के कास्ण कई लोग श्पना देश छोड़-
कर दाहर गये । वापिस श्राते हुए परप्रातीय भायाश्यों ने सस्झार दे दपने
साथ ले श्राए । ज्ञानेश्वर श्रीर एकनाय मे काल की भाषाओं के दी का
रूप इस शत्ती से मिलता है ।
सोनद्वों शती में मापा श्रघिर हिंधर हुई । मद्दानुमाव मसदी बे पंवाद
शरीर श्रकगान्स्तिन तर ले गये | फारसी का प्रभाव मरादी पर शझधिक
होने लगा। सबददो शतों में शिव-दाल में फारसी का श्रावमण हृटमूल
टू । पुर्तंगालियों से मी सम्बन्ध इसी काल में हुश्रा श्र लद्दादी शरीर
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