Book Image : योग - प्रवाह  - Yog Parvah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. ४० कान्दड्दास इतने वड़े संत श्रे कि राघादास उन्दें अंशावनार समते थे । राघोदास के कथनानुसार कान्दड्दास इन्द्रियों पर चेजय प्राप्त कर चुके थे । वे केवल भिक्षा में मिले अन्न हो का भोजन करते थे । यद्यपि उनको वड़ी सिद्धि तथा प्रसिद्धि प्राप्त थी, किन्तु उन्होंने अपने लिये एक मढ़ी तक से घनवाई । वे “अति भजनीक' श्रे और राघोदास का कहना है कि उन्होंने अपनी “संगति के सब ही निसतारे थे (प्र० १४० ) । ये तीनों-- मो !नदास, कान्दड और खेमजी-उनिश्वचय ही. राघोदास ( बि० सं० १७७००-१७१८ ई० ) से पहलें हुए हैं । सेवादास ने.भी विस्ट्त रचना की है । मेरे संग्रह में आई हुई उनकी “वानी' में ३५६१ साखियां, ४०९ पद, ३६६. कुंडलिया, ? छोटे अ्न्थ, ४४ रेखता, २० कचबित्त और ४ सचैये हैं । वे सीघे हरिदास निरंजनी की परंपरा में हुए । सौभाग्ठ इनकी पद्चचद्ध जीवनी भी 'सेवादास परची' के नाम से उपर है। इनके चेलें ( अमरदास ) के चेले रूपदास ने उसकी री संवत्‌ १८३९ ( ई० सन्‌ १७९४ ) में वैशाख कप्ण दादइ रचना की । रूपदास के कथनानुसार सेवादास की मृ फप्ण अमावस को; संवत्तू १७६९ चि० में हुई थी । क इन्होंने अपना सतगुरु माना है । परची उनके चमस्कारों पढ़ी है. जिनका उल्लेख यहां आवचयक नहीं है ।




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