योग - प्रवाह | Yog Parvah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.44 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).. ४०
कान्दड्दास इतने वड़े संत श्रे कि राघादास उन्दें अंशावनार
समते थे । राघोदास के कथनानुसार कान्दड्दास इन्द्रियों पर
चेजय प्राप्त कर चुके थे । वे केवल भिक्षा में मिले अन्न हो का
भोजन करते थे । यद्यपि उनको वड़ी सिद्धि तथा प्रसिद्धि प्राप्त थी,
किन्तु उन्होंने अपने लिये एक मढ़ी तक से घनवाई । वे “अति
भजनीक' श्रे और राघोदास का कहना है कि उन्होंने अपनी
“संगति के सब ही निसतारे थे (प्र० १४० ) । ये तीनों--
मो !नदास, कान्दड और खेमजी-उनिश्वचय ही. राघोदास
( बि० सं० १७७००-१७१८ ई० ) से पहलें हुए हैं ।
सेवादास ने.भी विस्ट्त रचना की है । मेरे संग्रह में आई हुई
उनकी “वानी' में ३५६१ साखियां, ४०९ पद, ३६६. कुंडलिया, ?
छोटे अ्न्थ, ४४ रेखता, २० कचबित्त और ४ सचैये हैं ।
वे सीघे हरिदास निरंजनी की परंपरा में हुए । सौभाग्ठ
इनकी पद्चचद्ध जीवनी भी 'सेवादास परची' के नाम से उपर
है। इनके चेलें ( अमरदास ) के चेले रूपदास ने उसकी री
संवत् १८३९ ( ई० सन् १७९४ ) में वैशाख कप्ण दादइ
रचना की । रूपदास के कथनानुसार सेवादास की मृ
फप्ण अमावस को; संवत्तू १७६९ चि० में हुई थी । क
इन्होंने अपना सतगुरु माना है । परची उनके चमस्कारों
पढ़ी है. जिनका उल्लेख यहां आवचयक नहीं है ।
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