तरुण गार्ड उपन्यास | Tarun Gard Upanyas

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Tarun Gard Upanyas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सभी श्रोर से वेखबर , जैसी खडी थी वैसी ही; ऊचे ऊंचे मोजे पहने , धूलभरी सडक पर, घेरा तोढती हुई; वदियों के निकट जा पहुची। उसने श्रपने सामने फैले हुए गदे हाथो से खाने की चीजे थमा दी। एक रूमानियन सर्जेंट-मेजर ने उसे पकड़ने की भी कोशिश की किन्तु वह उसकी पकड़ से बाहर हो गयी। फिर उसपर भारी भारी मुक्‍्को की बौछार पड़ने लगी किन्तु वह झूककर पहले एक केहूनी से, फिर दूसरी से, शझ्रपना सिर बचाने लगी । “कोई बात नहीं, मारे जाओ, मारे जाओ , बदमाशों , ” चीखी, “जहा चाहो, सिर को छोड़कर ! ” दक्तिणाली हाथों ने शीघ्र ही उसे कैदियों के समूह से ठेलकर बाहर कर दिया। सहसा वह सडक के किनारे राकर खड़ी हो गयी और उसने देखा कि जर्मन लेफ्टिनिट उल्टे हाथो रूमानियन सर्जेट-मेजर के मुह पर तमाचे जड रहा है श्रौर क्रोध से लाल कर्नल के झ्रागे, जो गुरति हुए सीकिया कुत्ते की तरह लग रहा था , रूमानियन झ्रधिकरण सेना की हल्के हरे रग की वर्दी पहने एक फौजी अफसर एटेशन की मुद्रा में खडा खडा श्रादिम रोमनो की भाषा मे कुछ वडवडा रहा है। जव ल्यूवा अपने हल्के पीले रंग के जूते पहनकर तैयार हुई उस समय तक वह पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी। अब जर्मन झअफसरो की कार उसे वोरोगीलोवग्राद की श्रोर लिये जा रही थी। सबसे श्राइचर्यजनक वात यह थी कि जमंनो ने त्यूबा की इस हरकत को भी दुनिया मे सबसे कुदरती चीज समझ रखा था। वे विना किसी वाधा के जर्मन कट्ील पोस्ट पार करके नगर में आरा गयें। की द ः लेफ्टिनिट ने घूमकर ल्यूवा से पूछा कि वह कहा उतरना चाहेगी ! और श्रपनें को पूरी तरह सभालते हुए उसने सीधे सड़क की झ्ोर इद्यारा श्र




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