शरत साहित्य | Sharat Sahitya

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Sharat Sahitya by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बास्दनकी बेरी ् से पूछती हूँ उसके घर नहीं है पर तेरे तो है तेरे कोइ लड़का तो है ही नहीं और लड़की भी दूसरी नहीं जिसके लिए चिन्ता हो। एक लड़की है इसी लड़की और जमाईंको लेकर घर चलाती यह क्या कम आनन्दकी वात छोती बेटी | और उमर कुलीन-घरानेके लड़केकी चालीस-बयालीसकी उमर क्या कोई उमसमे उमर है चह रसिकपुरके जयराम मुखरजीका दोहता है दोहदता उसकी उमर कौन देखता है जग्गो इसके सिवा अपनी लड़कीकी उमरकी तरफ भी तो देख जरा और भी गरियारी करेगी तो फिर ब्याहेंगी कब १ अन्तमें कया अपनी छोटी बुआकी तरह जिन्दगीभर कुआँरी ही रख छोड़ेगी जगद्धानीने दारमाते हुए कहा--मैं भी यद्दी कदती हूँ मौसी पर ल्ड़कीके बाप तो बिलकुल ही-- ः रासमणिकों इतना भी घीरज न रहा कि उतकी बात भी पूरी हो जाने देती | लल-सुनकर कह उठी--लड़कीका बाप क्यों न कहेगा अला उसके खुदके कितने घर-द्वार और कितनी जमीनदारी थी बात सुनके हेसी आती है । इसके सिवा अरुनकी बैठकमे दिन-रात वैठना-उठना गाना-बजाना सुनती हूँ हुका तक चल रहा है --सो ऐसी बात वह न कहेगा तो क्या चटरजी-मइया कहेंगे १ ददद कर दी तूने जग्गो पर एक बात कहे देती हूँ बेटी घर-वर जब मिल गया है तब ना-ना करके देर करेगी तो अन्तमें फिर वही कोरिया-वाला किस्सा होगा --- अतिका लोभी ठगाया जाता हें । तेरी छोटी घुआ गुलाबी बूटी छवरी रहकर मरी तरे बापकी बढ़ी और मझली दोनों ुआव्मोंका भी ब्याह नहीं हुआ । और तेरा दी क्या समयपर ब्याह हो जाता बेटी अगर तेरे चाप-मा काशीजी जाकर न रहने लगते ( समधिन काशी-वास कर रही थीं आगे-पीछे कोई झंझट था नददीं जमाई इस्कूलमें पढ़ता था --घर-वर ज्यों ही मिला चटते ठुम दोनोंके पीले दाथ कर दिये और लड़की-जमाई लेकर गॉवके गौँव लोट आये । कोई भॉजी न मार दे इस डरसे किसीको खबर तक नहीं दी सो अच्छा ही किया था नददीं तो ब्याह होता कि नहीं कौन जानता दे १--चल खेदी चल ।--जयराम मुखरजीका नाती --वहद भी काला और धौला दिनपर दिन और न जाने कितनी अनोखी बातें सुननी पड़ेगी --ले चल बिटिया अब और देर मत कर । कपड़े-अपड़े घोते करते दिआ-वत्ती जलाके माला जपते-जपते आज देखती हूँ पहर रात बीत चायमी । मगर एक बात मैं जरूर कहूँगी लग्गो खिस्तान-फिस्तानकों घर घुरुने २




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