मानव - दर्शन | Manav Darshan

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Manav Darshan by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सानव-जीवन की समस्या, सानव-दुर्शन का सहत्त्व प्रत्येक सानव से तीन बाते है, जानना, मानना श्रौर करना । जब तक इन तीनो मे सामब्जस्य रहता है तव तक मानव उत्तरोत्तर विकास की श्रोर बढता रहता है । जब इस सामज्जस्य में श्रसतुलन झ्रा जाता है तब मानव पराधीनता, अभाव भ्रादि दोषों में ग्राबद्ध हो जाता है । इस कारण यह श्रत्यन्त झावदयक है कि मानव ग्रपने जानें हुए का श्रादर करे । जाने हुए के प्रभाव से ही किए हुए के प्रभाव का नाश होता है, जिसके होते ही करने का राग मिट जाता है । राग रहित होते ही सेवा, त्याग, प्रेम आदि दिव्यता की जीवन में श्रभिव्यक्ति स्वत होती है । प्राकृतिक नियमानुसार जो मानव निज विवेक का शझ्रादर नहीं कर सकता वह सदग्रत्थो एव गुरुजनों से प्राप्त प्रकाश का भी श्रादर नहीं कर सकता । इस कारण प्रत्येक मानव को निज विवेक का झ्रादर करना शभ्रनिवायं है । सुने हुए मे आस्था होती है भ्रौर जाने हुए का श्रनुभव होता है । अनुभव विकल्प रहित होता है । देखे हुए मे श्रर्थात्‌ प्रतीति में समता, कामना एव तादात्म्य होता है । इस दृष्टि से देखे हुए मे श्रौर जाने हुए में बडा भेद है । जाना हुभ्रा दर्शन है, देखा हुमा नही । मानव जो भी जानता हैं उसका यदि झ्रनादर न करे तो वह ममता, कामना श्रौर तादात्म्य से रहित हो सकता है । ममता, कामना और तादात्म्य के रहते हुए किसी भी मानव को निर्षिकारता, परमच्षान्ति




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