ब्रह्म दर्शन | Brahma Darshan

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पं. जानकीनाथ मदन - Pt. Jankinath Madan

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रायबहादुर - Raybahdur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुभवी स्व । ७ . अब वरुण देवता ने चन्द्रमा का रूप धारण करके सभा के मध्य वर्णन किया-ऐथिवी मेरे आधार पर ठहरी है और परे चक्र में प्थिवी ओर सोम दोनों मण्डरू मिश्रित हैं परन्तु मेरा विशेष भाव सोम मण्डछ में हे ओर में प्रथिवी मण्डछ सामान्यरूप से स्थिंत हूँ प्रथिवी में शान्तिं मेरा गुण हे रसमात्रा मेरा सूक्ष्म रूपदे और शीतऊता मेरा कार्य है। इतने में सूय्ये देवता ने अधि का रूप धारण करके कहा कि प्रथिवी और चन्द्रमा दोनों मेरे सहारे पर खड़े हैं और में उनको घेरे हुए हूँ प्थिवी में सत्‌ की भावना ओर चन्द्रमा मैं प्रकाश सुझ से है नेत्र बिना नतों प्रकाश की प्रतीति होती ह और न किसी वस्तु का सत्‌ होना निश्चय होता है रूप मात्रा मेरा सूक्ष्म मावंहे ओर में त्रिलीकी का स्वामी होकर प्रजापति कहलाता हूँ. मेरा कार्य ऊष्णता है जिस करके प्रथिवी वरुण देवता की शक्ति के प्रभांव से जवत्‌ बहजाने से बचजाती हे जठराधि बागी और नेत्र भरे -अधिष्ठान हैं जिनके द्वारा जगत के सबे काय्य सिद्ध होते हैं । इतने में मरुत देवता प्राण पवन का रूप घरके बोलि त्रिठोकी मेरी शक्ति से ठ्हरी हे ओर में पथिवीः चन्द्रमा और सूये का साक्षी हूँ मेरी प्रेरणा बिनाः यह तीनों जड़ रूप ह परन्तु इनकी सूरवि परे बलसे चर रूप हाजाती है स्पशे मेरा काये हे और निश्चय मेरा रूप है । रुद्र देवता ने सभा के सन्मुख होकर कहा-कि मेरी सू्ति




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