उपदेश - रत्न - माला | Updes - Ratn - Mala

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Updes - Ratn - Mala by चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिट्ठानों की मदिमा ७ जीव-दिंसा न करना पराया घन ले लेते की इच्छा रखना सदा सच्च घोलना समय पर यथा शक्ति दान देना जहाँ पराई खियों की चर्चा होती दो वहाँ चुपचाप रदना ठष्णा से करना बड़े लोगों के साथ सदा नघ्र हो कर बात चीत करना प्राणी- - मात्र पर दया करना सच शाखीं का ज्ञान रखना सर निंय- नेसिखिक कर्म्मी का न छोड़ना--इन नियमों का जो मनुष्य पालन करता है--उसका सदा कल्याण होता है। चिद्वानों की सडत वुद्ठि की जड़ता का हुरती सत्य कुल- कीर्सि के बढ़ाती है । विद्वानों की सजंत की महिमा का भला कान कह सकता है। जो नीच हैं वे विध्वों से डर कर किसी क्राम के करने में हाथ नहीं डालते । जी मध्य दर्ज के मनुष्य होते हैं वे फाम के आरम्भ ता कर डालते हैं पर बिन्न सामने आराते ही उस कार्य्य को छोड़ बैठते हैं । पर जो उत्तम श्रेणी ( दर्जे ) के लोग हैं वे काम के एक बार शॉस्म्भ कर सब विजन चाघाओं के दूर कर के उस काम का पूरा कर के छोड़ते हैं । झच्छे झादमी दु्ों और थोड़ी पूं जी बालों के सामने कभी हाथ नहीं फैलाते | वे न्याय से जो पैदा करते हैं उसीसे श्रपना निर्वाह कर ठेते हैं ४प्राण उनके भले हो चले जाँय वे नीच कामों में कभी हाथ नहीं डालते । अच्छे मनुष्यों की परीक्षा विपत्ति पड़ने पर ही हुआ करती है। झच्छे मचुष्यों के लिये यह संसार तलवार की पैनी धार के समान है। जुरा चुके और मरे । घर्थाद्‌ अच्छों का इस संखार में बड़ी सावधानी से बर्तनों चाहिये ।




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