आत्म प्रकाश | Atma Prakash
श्रेणी : स्वसहायता पुस्तक / Self-help book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.45 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगवचावफे प्रति अजुन कहता हैं कि-दे भगवन ! तीनों छोकोंके
चिष्देटक राज्यकों तथा दूनताआॉफे स््त्थीट्नकों भी पाकरके में नहीं
देखता हूं कि इन्द्रियोकयों शोषण करमेवाला जो यदद मेरा शोक है, सो
सनिश्वय करके दूर हो |. धली रु मैं शिष्य आपकी शरण हूं, सुझे
आप श्रेयका उपदेश करे, जिससे मेरा कल्याण हो । इसके अन्तर
भगवानसें सम्पूर्ण गीता सुनाकर आत्म तत्वका वोध कराया, जिससे
अज्लुंचने अर<दूवाँ अध्यायमें सुपर कद दिया कि हे. अच्छुत !
आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया तथा संशय शी दूर हो गया |
अब विचार पा करके अपने आत्म स्वरूपमें स्थित हू। इससे साबित
होता है कि श्र य रूप आत्माकों प्राप्ति विना चैठोक्य राज्य पा करके
भो अजुंनका कल्याण नहीं होता था तथा अज्ञुन पण्डित भी कम न
था, अतः चोघ रहित विद्यामें थी कर्याण नहीं है। इसलिए हे प्रिय !
आत्मा दी कल्याण स्वरूप है। इसी प्रकार 'वददारण्य' में च्हथित हैं
कि नारदने सनत्कुमारसे कहा कि क्या कारण है कि संसारमें जितनी
चिद्याए' हैं, उनको मैंने पढ़ा, तो भी सुभे विश्वाम न सिखा, किन्तु
शोक छगा दी रहा । तब सनत्कुमार जीने भऋुभासन७५ आत्माका
उपदेश करके चारदजीकों फरथाण्यी प्राप्ति करायी 1 श्रुतिशभी
कहती है- तर्दतिशशोक्ाट्मविव_”। झात्माकों जाननेवाला शोकसे
परे चला जाता है, अर्थात् ऋ<4।णकों प्राप्त होता है |. प्रार्थना रूपसे
भी श्रुति कहती है--“तन्मे मन: शिवसंकर्पमरुछु” । घह मेरा मन
शिव कहिये कट्पाण स्वरूप आर्माक। सूप करनेबाएग हो ।. भव
तीसरे पदका भाव द्रशाते हैं । हे प्रिय ! अपना आत्मा ही आनन्द
स्वरूप है, यदि सांसार्कि पदार्थोमें आनन्द होता, तो <न्ावसथामें
तो जाश्रत अवस्थाका कोई पदार्थ नहीं रद्दता, तो भी प्राणी अनेक
प्रकारके खुखोंका अजुसव करते है; सो नहीं होना चाहिये । शंका ?
: है मगवन, | स्नभावस्थामें तो अनेक प्रकारके पदार्थ दिखायी देते हैं।
जेखे सूर्योदय दो रहा है, मैं समुद्रमें स्ानकर रहा हूं, मैं पुप्पों करके
सज्जित श<वापर शयन कर रहा हूं, मैं चार भअक।९का। भोजन कर रहा
हूं। सक्ष्य, भोज्य; लेहा और चोष्य, ये चार मकारके अन्न होते हैं
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