ब्रह्मचर्य - जीवन | Brahmachry - Jeevan

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Brahmachry - Jeevan by विजय बहादुर सिंह - Vijay Bahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरकेंमान झवरुधा द् देता है ? कौन शरीर-विज्ञान की इन वारीकियों को समझने की चेष्टा करता है ? यद्यपि दसारा घ्म-शाख्र हमारी धार्मिक पुस्तकें इन वातों से भरी हुई पड़ी हैं हमारे पूर्वजों ने इसारे लिए उनमें ज्ञान का मागे भी दिखला दिया है किन्तु शिक्षा और कुशिक्षा के अभाव से इम उन बातों पर ध्यान नहीं देते और न उनसे किसी प्रकार का ज्ञान दी प्राप्त करते हैं। यदि दम उन पर ध्यान देने लगें उनके बताये हुए शरोर-विज्ञान विपयक चियमों के अनुसार कार्य करने -लगें तो इसमें सन्देद नहीं कि हमारी दुदंशा के वादल हमारे भाग्याकाश से अलग हो जायँ । भगवान श्रीकृष्ण ने क्या ही अच्छा कहा दै कि यदि संसार में ज्ञान का ालोक फैल जाय तो संसार के सम्पूर्ण असत्त्‌ कार्य अपने-आप विनष्ट दो जायें । देखिये -- यथेधांतति समिद्धोधर्निर्भस्मसात कुरुतेडजुन । ज्ञानाग्निः्घनेकर्माणि भस्मसात कुरते तथा ॥. --गीता चास्तव में ज्ञान दो संसार में सब कुछ दे. । ज्ञानदहीन मनुष्य संसार में निःसार सा मालूम होता है । मनुष्य दयोकर यदि ज्ञान से शून्य हुआ तो उसमें और पशुओं में कोई शझन्तर नहीं रद जाता । पु भों जीव दै.। किन्दु उसमें ज्ञान नददीं--वोलने की शक्ति नददीं इसीलिए संसार में उपयोगी होते हुए भी वह अनुपयोगी के नाम से पुकारा जाता है। किन्दु मानव-जीवन का यह उद्देश्य नहीं । उसका संसार में अस्तित्व है । कददना चाहिये उसी से




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