आर्ष-ग्रंथवलि बृहदारण्यक उपनिषद् | Aarsh Granthawali Brihadaranyaka Upanishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बददारण्यक-उपनिषद्‌, 9 ( गर्जना ) हो इसकी वाणी ( हिनाहिना ) है भला १ ॥ ष्यि-इस में, अच्वमेथ के घोड़े के विपय में जो रहस्य हैं, उस का वर्णन है । यद सारा जगद समाहिरूप में विराट हें, यद विराट एक पुरुष है, भिन्न २ देवता उस के भिन्न २ अग दें, जैसे सूर्य नेत्र दे और वायु माण हें इत्यादि ( देखों कऋगू० १०1९० और अथवे १०1७ा३२-३४)। इसी विराट से हमारा जीवन बना है और इसी के अगों से इमारे अग चने दें। जो कुछ इस बड़े न्नह्माण्ड में है, बही हमारे इस छोटे दारीर में दे जो न्नह्मण्डे सोइ (पे ण्डे” (देखो ऐतरेयारण्यक २1४।५-२५२। ३1३५) इमारे अन्दर की दाक्तियां इन वादरकी दाक्तियों के साथ ओत मोत हो रह, हैं । यादि यह वाइरका जगव्‌ छुद्ध पवित्र वछिप्र और दृदिप्ठ दै,तो हमारी अध्यात्म बाक्ियों पर उतर का बैता दी मरसाव पड़ता हैं । इदी मकार यदि हमसारी अध्यात्म शक्ति पां शुद्ध, पत्रिच, वलिप् और रदिष्ठ हैं, तो वे इस बाइर के जगद्‌ को वैसा दी बना देने का सामथ्य रखती दैं। यज्ञ का नियम इसी सम्बन्ध के आधार पर है । चाइरी जगव. में जो स्व- भावतः यज्ञ दो रहे हैं, उन्दीं का अलुकरण यद हमारे यज्ञ हैं । न्नाझण ग्रन्थों में जो यज्ञों को वर्णन है, उस से स्पष्ठ मदीत होता है, कि यज्ञ नया नहीं उत्पस किया जाता, किन्तु चद्द पहले दी के जो लोग यहां यश के सस्वन्घ फो उड़ाकर परमात्मा को थोड़े था रूप चना डालते हैं, चचच यक्क की मदिमा को तो जानते दो नद्दीं, पर घोड़ा बनाने में परमात्मा फी महिसा को सी घटाते हैं. । झा यद्द क्‍या महिमा इुई, कि मेंद चरसना परमात्मा रूपी घोड़े का सुतना हैं, और बाद ठका गजेना परमात्मा रूपी घोड़े का दिनहिना डे । छोटे यश आर इस स्वाभावक चड़ यश मं सुद्यता दिखलाना तो महिमा की वात दे, पर परसात्मा ब्हो घोड़ा चनाना कोई सहिमा थी वात नरदीं । घत्युत महिमा को घटाना दे ॥




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