गीता विमर्श | Geeta Vimarsh

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Geeta Vimarsh  by श्री नरदेव शास्त्री - Shri Nardev Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के गीता-विमश # (४) जाता है, 'कभी दूव जाता है, कभी उभर जाता है 1.जिस प्रमाथ मेंन्युन दोता है या दब जाता है, उसी प्रमाण में युद्ध भी कम होते हैं । ' स्वार्थ * जिस घ्रमाणमें उभरता है युद्ध सी उसी 7 साग से उभरते हें । संसार फ इतिहास इस चात का सादय देते हैं । : मानव जाति की चासनापँ, जन्म-परम्परों फे कर्मबन्धत, श्वाध झादि पर दृष्टि डाला कर कददना पड़ता है फि संसार से युद्ध की परम्परा कभी भी इट नहीं सकती, बसी नष्ट नहीं हो र क्ती । देवासुर संप्राम उटि के थादि से दी चले श्रार दे. हैं शौर-सरष्टिके न्ततक चलेंगे । जच तफ संसार में लोभ. इ््या, शसूया टू प, '्न्याय शादि रहेंगे तबतक युद्धमी बरावर होते श्टें गे। पदले पदले धर्म की शार धोकर पश्चात्‌ घह चिजयी शोता रहेगा ससार में युद्ध न 'हो तो संसार की .शाँखें न धुल करें । ी ' ,. कीरव थ पाएडवो के युद्धमें “यदि कौरव 'प्िजयी दोते ” हो संसार-मं-यदद होता, कि क़ौरवों के सर थ्रन्यायी , होना पादिये,-पारडदों ने धर्भ करके पय। फ़र लिया ।पराम-रावण फे युद्ध 'यदि रादण जीत जाता” तो संसारसं दैवी सम्परत्‌ मिट ज्ञाती श्वौर शातुंर दत्तिका ही सज्य होता। १९१४ .से ३९१८ तकका ज़मेंन युद्ध इसी कार संसरकी छाखें खोल ज्युका है. जो राष्ट्र जितना झपराघी था उसको उतना दण्ड मिल चुकी किसीकी द्वार हुई पर झसलमं चह्द जी 11 किसी की जीत हुई पर घरसूल में वदद धारा धौर सी .सौ दादो सी चर्पो के. लिये चह. श्र दिवालिया बन गया। किसी बेचारेको बैंठें बिढ़ाये श्चतन्ननंदा मिली, किसी का दोग हलका छुद्मा, किंसी का नाम बुआ, किसी का कम. बना । किन्दीं ट्री .को पाप: कमों... . लनीकिय




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