लोक - जीवन | Lok - Jivan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.7 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर - Dattatrey Balkrashn Kalelkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मरणोत्तर जीवन की कल्पना श्५
यांर किये जाते है उन्हींका नरक मे थोढ़े-चहुत सुधार के साथ
आरोपण हुआ है। यहाँ के सुखोपभोग में जिस प्रकार रोग; जरा
ओर मरण वाधक दे, उसी प्रकार किसीको सताने की हृविस में भी
एक बाधा है । मारनेवाढ़े मनुष्य को कव थकावट माछम होगी ओर
कच रहम भा जायगा; यह नहीं कहा जा सकता, एक तो यही बड़ी
रुकावट है । छेकिन इस बारे में मन ओर शरीर सहते-सहते उसके
आदी पड़ सकते है; किन्तु मोत-दनि ओर हिरस्कार के अतिरेक से
जिन्हे सताने देना है वे वेसुध हो जायें या मर भी जायें तो उसका
कया इछाज ? दोनों तरह यहदद हमारी पहुँच से वाइर की वात है,
इसका कोई उपाय नहीं । लेकिन नरक में ऐसी कठिनाई नहीं है ।
वहाँ के यमदूत कामकाजी होने के कारण उन्हें थकाबट, परेशानी या
रहम की रुकावट ही नहीं पड़ सकती । ओर वहाँ की यातनाये चाहे
जितनी भयंकर हों तो भी मनुष्य न तो बेसुध दोकर पड़ जाता दे
ओर न ख़त्म दी हो जाता है ।
स्वर्ग-नरक की लोकरूढ़ कल्पना साधारण मनुष्यों के अनुभवों
पर से ही खड़ी की गई है, ध्तना समझ ढेने के बाद उसका कोई
मूल्य नहीं रहता । परन्तु मन की ऐसी प्रदृत्ति कायम रइती है कि
मनुष्य-जीवन से उंचे दर्ज का कोई जीवन होना चादिए, इसी प्रकार
मनुष्य जीवन से हीन; शर्थशून्य ओर विशेष सन्तापदायक जीवन
भी होगा ही ।
इसछिए मरणोत्तर जीवन, पारछोकिक जीवन, स्वर्गछोक;
सृत्यु आदि क्या है; यदद अपने मन मे एकबार सोचने की इच्छा
मनुष्य जाति को बारम्बार होती है । एक देह छोड़ने के बाद तत्काछ.
अथवा काठान्तर में; इसी प्रथ्वी पर या अन्यत्र; मनुष्य-कोटि में या
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