संदिग्ध संसार | Sandigdha Sansar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.06 MB
कुल पष्ठ :
700
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संदिग्ध संसार ७
चिन्ता में भाग ढेने का मुझे विशेष अधिकार दै। तू अब
तक चिंता में पढ़ी दे, इससे कया मेरे मन में चिन्ता नहीं
उत्पन्न होती ?” पुरुष ने कहा ।
आपका यद्दी विचार है तो मैं छापकी इच्छा के
आधीन हूँ । मुके यह चिन्ता जलाया करती है कि भगवान
ने कृपा करके दम लोगों को धन-गृहद, दास-दासी, मान और
प्रतिष्ठा झादि संसार के जितने सुख-साधन हैं, सब दिया है;
पर सगवान की कृपा से जब झपने लोगों का स्वगंवास दो
जायगा तब इन सम्पत्तियों का उपयोग करने वाला कोई नहीं
रद्द जायगा। इस विचार से मेरा कढेजा टूक-टूक हो रहा है
और प्रस्तुत सुख में भयंकर दुःख का अजुभव होता दै ।'
पुरुष के मन में शोक का आघात हुआ । शोक की
छाया उसके मुखमंडल पर चृष्टिगोचर दोने लगी । वह
निः्धास छेकर बोला--'शोक है ! अंधों की लकड़ी के
समान एक लड़की थी; उसे भी दुष्ट काल ने छुटेरा का
रूप घारण करके अपनी भोली में रख लिया । यदि वह
मर गई दोती तो एक श्रकार से संतोष रहता; 'पर किसी
ने उसे इरण कर लिया--यदद विचार मन में आते दी
जीते जी दी मरण के ससान बेद्ना होती है ।'.
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