हम करें क्या | Ham Karen Kya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.28 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मारकों के भिखमंते ण
जैसे थे जो मुझे सडको पर मिला करते थे। एक का नाम पीटर था। वह
कालूगा का रहनेवाला एक सैनिक था। दूसरे का नाम सेमन था और
वह ब्लाडीमीर का एक किसान था। इनके पास तन के कपडो और दो
भुजाओ के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। अपनी भुजाओ से खूब श्रम
करके वे प्रतिदिन ४०-५० कोपेक * कमा लेते थे। इस कमाई में से वे कुछ
बचा भी लेते थे। पीटर भेड की खाल का एक कोट खरीदना चाहता
था और सेमन गाव वापस जाने के लिए पैसे जमा कर रहा था। इन्ही
लोगों की जान-पहचान का यह फल था कि जब कभी में सडको पर उनके-
जैसे दूसरे छोगो को भीख मागते देखता तो उनकी ओर मेरा ध्यान विशेष
रूप से आकर्षित हो जाता और मेरे मन मे यह प्रश्न उठता--क्या कारण
है कि ये दोनो तो काम करते है और इनके ही-जैसे अन्य व्यवित भीख
मागते फिरते है ?
जव कभी में सडक पर इस तरह के किसी किसान-भिखमगे से मिलता
तो उससे साघारणत यही प्रदन करता--“तुम्हारी यह दवा कंसे हुई ?”
एक वार मुझे एक हट्टा-कट्टा किसान मिला,जिसकी डाढी सफेद होनी शुरू
हो गई थी। उसने मुझसे भीख मागी। इसपर मंने उससे पूछा--“तुम
कौन हो गौर कहा रहते हो?”
उसने बताया--“काम की तछादा मे में यहा कालूगा से आया था।
पहले मुझे एक जगह लकड़ी फाडने का कुछ काम मिल गया था, पर जब
मेने और मेरे साथी ने मिलकर वहा की सारी लकडी फाड़ डाली तब हमे
नए काम की चिन्ता हुई, लेकिन काम नहीं मिला । मेरा साथी
मुन्ने छोडकर चला गया और अव पन््द्रह दिन से मे काम की तलाश में घक्के
खाता फिर रहा है। इस वीच मेरे पास जो कुछ था, मेने बेच खाया
और अब कुल्हाडी या आरा खरीदने के लिए मेरे पास एक फूटी कौडी
तक नहीं हैं ।”
# १०-११ पेस, अर्थात् ९-१० भाने। कोपेक ताम्बे का एक रूसी
सिदका है, जो भग्रेजी पेनी के चतुर्थादा अर्थात् एक पैसे से भी कम के
बरावर होता हैं ।
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