पद्य रत्न माला | Padya Ratna Mala

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Padya Ratna Mala by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जायसो प्‌ शआरेखि साँप, पेट महँँ पैसी । कादखि हुमुकि, जाति मु खसी ॥ भाट कहा--'धनि गोरा, तू भा रावन राव | औति समंदटि वीधिके, तुस्य देत है पाँव ॥ ७ ॥ कददेसि अंत अब भा मुद्दे परना । अंत त खसे खेह सिर भरना ॥ कद्ठिके गरजि सिंघ अस धघावा । सरजा सारदूल पहँ श्ावा ॥ सरजे लीन्द सॉग पर घाऊ। परा खड़ग जन परा निद्दाऊ ॥ चज़ क साँग वद्ध के डॉडा | उठी आगि तस बाजा खाँड़ा ॥ मानहु वद्च बज़ सौं बाजा । सब दी कहा परी अब गाजा ॥ तस सारा दृठि गोरे, उठी बच्च कै श्रागि। को नियरे नहिं छावै, सिंघ-सदूरदि लागि॥ ८ ॥| सब सरजा कोपा चरिवंडा । जनहु सदूर केर भुजद्ण्डा ॥ कोपि गरजि सारेसि तस वाजा । जानहु टूटि परि सिर गाजा ॥ ठढॉठर टूट; फूट सिर तासू । स्थों सुमेर जन टूट झकासू ॥ घमकि उठा सब सरग पतारू । फिरि गई दोठि फिरा संसाख् ॥। मइ परलय झस सब ही जाना । काढ़ा खड़ग सरग नियराना ॥ सस मारेसि स्थों घोड़े काटा । घरती फाटि सेस-फन फाटा ॥ गोरा परा खेत महैँ, सुर पहुँचावा पान। चादल लेइगा राजा, लेइ चितउर नियरान ॥ ९ ॥| नं -्रिषिथि- निशा




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