विश्वप्रपंच | Vishvaprapanch

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Vishvaprapanch by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ ) यदि हम करे तो वे अगोचर हो जायेंगे। ये ही अगोचर डुकड़े परमाणु होगे और इनके और टुकड़े न हो सकेंगे । वुपिक के अनुसार परमाण नित्य ओर अक्षर इ्न्हो की योजना से सब पदाथ बनते है और सष्टि होती आकाग को छोड़ जितने प्रकार के भूत होते है उतने ही प्रक माणु होते है-यथा प्रथ्वीपरमाणु जर्प्माणु तेज परमाणु और चायुपरमाणु । परसाणु रूप में आकाण के समान गेप चारो भूत भी नित्य हैं । आधुनिक विज्ञान ने प्रथ्वी जछ और चायु को द्रव्य का अवस्थाभिद सिद्ध किया और तेज को गवतिजक्ति का एक रूपसात्र । अतः परमाणु भी चार प्रद्ार के नहीं ७८ प्रकार के ठद्दराए गए । कुछ लोग नई चाता के साथ पुरानी चातों का अधिरोध सिद्ध करने के लिये भूता को ठोस द्रव वायव्य और अतिवायव्य अवस्थाओ के सूचक मात्र कहने छगे हू । पर परमाणुओं के वर्गीकरण की ओर ध्यान देन से यद्द स्पष्ट दो सकता है कि वेशेपिक का अभिप्राय अवप्थाभिद नहीं है गुणभेद के अनुसार ट्रव्यभेद ही हैं- जसे जख में सासिद्धिक या स्वासाविक ट्रवत्तत का शुण है अत्त चह्द एक सूल द्रव्य हैं। पर आधुनिक रसायन शास्त्र से जछ को किस प्रकार यौगिक सिद्ध किया है यद्द ऊपर कहा जा चुका है । मूछभूतो और परमाणुओ का संबंध वगेपिक ने उसी रीति से निधोरित किया है जिस रीति से आधुनिक रसायनबास्त्र ने किया है । यह हमारे लिये कम योरव की बात नहीं है। ब्योरा ठीक न सिछने के कारण इस पर परदा डालने की जरूरत नही | (0 श्र ् के




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