बुधजन सतसई | Budhjan Satsai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.56 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवाचुरागशतक । ३
आन थान अगर ना रुचै, मन राच्यो तुम नाथ ।
रतन चिंतामनि पायके, गहे काच को हाथ ॥ १५ ॥
चंचल रहत संदंव चित, थक््यों न काह ठोर ।
अचल थया इकटक अब, लग्यों रांवरी ओर ॥ १६ ॥
मन मोद्ां मेरा प्रभू , सुन्दर रूप अपार ।
इन्द्र सारिखे थकि रहे, करि करि नेन हजार ॥ १७॥
जेसें भालुप्रतापतं, तम नासें सब ओर |
तेसें तुम निरखत नस्यों संशयविश्रम मोर ॥ १८ ॥
धन्य नेन तुम दरस ठखि, धनि मस्तक लखि पॉय ।
श्रवन धन्य बानी सुनें, रसना धनि गुन गाय ॥ १९ ॥
धन्य दिवस घनि या घरी, धन्य भाग मुझ आज ।
जनस सफल अत्र ही भयो, बंदत श्रीमहाराज ॥ २० ॥
लखि तुम छवि चितचोरको, चकित थकित चित चोर ।
आनेंद पूरन भरि गया, नाईिं चाहि रहि और ॥ २१ ॥
चित चातक आतुर लखें, आर्नेदचन तुम ओर
चचनासत पी दप्त भा, ठपा रही नहिं आर ॥ २२ ॥
जेसो बीरेज आपमे, तंसा कहूँ न ओर ।
एक ठार राजत अचल, व्याप रहे सब ठार ॥ २३ ॥
यो अद्भुत ज्ञातापनो, लख्यां आपकी जाग ।
भी बुरी निरखत रहो, करी नाहिं कहूँ राग ॥ २४ ॥
१ '्ञापकी । २ पणक्रम ।
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