सुखसागर भंजनावली | Sukhsagar Bhajanawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.92 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इन्दींसे करके अब म्रीती, वना सेवक हूं में रुचिसे ॥ २ ॥
मैं हूं सदन सुख रूपी, में हूं झत सत्य जनरूपी 1
ल्खा सामान्य दो ज्ञायक, चना है नित्य मैं रुचिये ॥ ३ ॥
समीको आपसा जाना, सभीकों झा पहचाना |
मिठाकर सम सुखोदधि कर, नहीं रमता हू में रुचिसे ॥ ४ ॥!
गज़ल,
चखो नित ज्ञान अमृतको, नो सब दुख दुर करता दै ।
परम कल्याणका भानन, बढ़ीं आनद करता है ॥ टेक ॥।
मरम भव दुख भरनमें बहु, उठाए खेद दुखदाई |
सरम करता सुलासन पर, वहीं आराम करता दे॥ ६ ॥
करमके फंदमे पड़कर, करे जो भाव पर रूपी 1
उन्हींपे बांध कर्माको, भवोके दुख भरता दे ॥ २ ॥
लखो निन रूप सदू ज्ञानी, नहा बहता सुखद पानी |
उसीमें दृष्टि घर अपनी, नगतडी देख करता दे ॥
सफल कर नन्मको अपने, नो दू चाहे है सुख आातम |
सुखोदधिमें रमन करना, सभी जेनाल दरती है ॥ ४ ॥
गजल,
करे भक्ति सुआातमकी, नहां निर्वाण गुण होता 1
परम कल्याणमय मूरतसे, दशन नित्य झुम होता ॥ टेक ॥!
वही संसार तारण है, वददी भव दुख निवारण है । -
चढ़ी गुण सार कारण है, कि निसमे सर्म नित होना ॥ ९ ॥
करम गिरि चूर करनेको, बढ़ी है वलत्तम निषा
वह सुहम दे उसीसे दी, हृदय मदिर सफल होता ॥ २ ॥।
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