काव्याकलन | Kavyakalan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कंवौर स्वयं श्रनुसरण करके ' इन कवियों ने अपने उपदेशों श्रौर वचनों की प्रेभावोत्पादकत्ता इतनी बढ़ा दी कि उस समय का बढ़ा-वढ़ा सामा- 'जिक दंभ फीका पड़ गया | कबीर की उपासना निराकारोपासना थी | उनके काव्य में उपात्य के प्रति जो शब्द-संकेत मिलते हैं वें स्वभावतं; रहस्यात्मक हैं । उपासना का श्राधार व्यक्त होने से उसके प्रति कहे शब्द ' भी सदज स्पष्ट दोते हैं, किन्तु जब श्रव्यक्त की उपासना होती है तब रूप- कमय रहस्यात्मक शैली का श्राश्रय लेना श्रावश्यक हो जाता है | काव्य में रहस्यवाद की उद्भावना का यही मूल कारर है। कवीर हिन्दी के संवंप्रथम रहस्यवादी कविं हैं | वे वहुशुत थे । उन्होंने बहुत दूर- दूर तक देशाटन किया, हृटयोगियों तथा सूफी मुखलमान फकौरों का सत्संग कियां, कवीर ने ब्रह्म को, जो हिन्दू-विचार-पद्धति में शान-मार्ग का निरूपण था सूफ़ियों के ्नुसार उपासना का ही नहीं प्रेम.का भी विषय बताया श्रौर उसकी प्राप्ति के लिये हृठयोगियों की साधना भी स्वीकार की | उनकी युक्तियों में कलावाजी उतनी नहीं जितनी तथ्य-निरुपणु की प्रेरणा । उनकी भाएा खिचड़ी है, क्योंकि वे पढ़े-लिखे नहीं थे इसी से उनपर सभी तरह के बाहरी प्रभाव पड़े श्र उन सब का सुन्दर समन्वय उन्होंने श्रपने काव्य में किया और कहा भी है-'सो शानी जो श्राप विचारें ।” निगण संत कवियों में कबीर प्रतिभा, प्रचार और कवित्व की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है । उनकी वाणी का संग्रह वीजक के नाम से विख्यात हैं | 'इसके तीन भाग किये गये हू-रमैनी, ठबद श्ौर साखी । इनकी कविता में मानव मात्र को स्पा करनेवाली, मानव मात्र से रहानुमूंठि रखने- 'वाली और सामाजिक संकौ्ण॑ता के प्रभाव से परे उदार भावनाओं का




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