भारतीय दर्शन के मूल तत्व | Bhartiya Darshan Ke Mool Tatv

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Bhartiya Darshan Ke Mool Tatv by रामनाथ शर्मा - Ramnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[४3 डरा दो एसके प्रतिदादी पल की मी स्वापता हुईं। धड़गार बआास्पा्म - काट मदर ईठबाद,..अवाद _ वाई दार,_ विश्प्टाईतनाद सदा _ सिप्रमी जा, लिडास्तों को क्रिया प्रतिक्रिया के बीच ारतीन दशंत सर्व प्रबतिघील रहा | पएम्तु परस्पर तक बितरक करते हुए थी सभी मारतौम दसंतों मैं बेद, बौदा गौर हपनिपदों मैं समात कप से आस्था १. चूत में आत्त्वा बोर विस्वास है। सभी शास्विक इएंतों ने भुतति बौर विस्वात... को प्रमाण याता है पच्चपि बह भुखि प्रमाण सल्द नहीं बल्कि अपेधागुबूठि के सत्प पर आादारित था | वास्तव में बेद दृप्टा ऋषियों के अपरौक्षानुयूति-लम्प छात के मंडार हैं। सूतकालौम इसंग मैं इती आस्था के कारण सभी भारतीय दर्शनों में एक अकार का कम विक्षलाईं पढ़ता है । परादु भुति को प्रमाण मातते का मर्च लब शा तह है । पंहर धैते बासंतिक थी थो कि अपने को केवल टिकाकाए कहते थे शुतति व परस्पर बिरोष होने पर ठकें का प्रमाण देने का समर्षष करते हैं । तारतीब दर्शन लिस कार मातव जगत में मैठिक व्यवस्था देखता है बती प्रकार धौतिक धपत में थी लाइबत मैतिक ११ छत, कर्म भौर ब्यगरणा मैं दिइगास करता है। इश सार्थमीम मैतिक पूरवर्खत्ल ले चिइवात ब्यगस्था को हो बेदों में ऋतु कहा बया है। मसौमांखा से इची का शाम पूर्व है । स्पायर्षद्ेपिक में इसी को अपूप्ट कटा नया है । इसके शतुलाएं देवता भीर-पानी भौर पृष् लक्षण शबी एक तार्वधौम छारगतण भैतिक व्यवस्था पर चलते हैं। यही मैसिक ब्मबह्णा ब्यक्ति के जौदत में 'कर्म' के लिदात्त इाण प्रकट कौ जाती है। ब्ाम' थी माएतौब दार्शनिक कर्म के सिदास्ठ को सामते हैं । कर्म के दिडात्त के बडुदार धर्मागर्य इत्यादि कर्मफल शस्नार कप मे प्र सुरक्षित रहते हैं और इजारे थौगत की बटताओं को परिचाछिस करते हैं इत प्रथएर एंप्रार शक रंपमंच के समात है चिए पर समी को अपने क्मातुद्ार निरिचत पार्ट शा करना पड़ता है । कर्म के बंबन ऐ छूटने का ताम हो पोख है और लिस- चित्त दर्पतों में इस मोक प्राप्ति की अतेक शिधियाँ बतलाईँ पई हैं। कर्म के चिडास्त के साथ ही पुतर्चस्प का सिद्धास्त थी सदा हुआ है। कर्ज के बल्बरों के कारण थात्पा को दार थार धरौर धारण करता पड़ता है । पोल होते पर ही पुतर्यन्म ऐ छटकारा बित्तता है। प्यान रहे की चार्ाक उपरोक्त सजी रिद्धाखों के गिदद्ध दै अत मारठौय दर्मत कौ विधेषताएँ रगपर चायू नहीं होतीं । बम्द इगी जारदीव द्गों मैं अपरौलत विशेषताएँ स्यूनाधिक कप में पाई शादी हैं ।




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