राष्ट्र कूटों का इतिहास | Rashtrakuto Rathodo Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.78 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राषसालें का चैश -त्श्
सबसे पदला दानपत्र, जिसमें इन्हें यदुवंशी लिखा है, श> सं० ७८२
(बि० सं० र १७) का है । इससे पहले की प्रशस्तियों में इन राजाओं के सूये
या चन्दवंशी होने का उल्लेख नहीं है । म
इन्हीं ८ दानपत्रों में के श० सं० ८३६ के दानपत्र में यदद भी लिखा है!--
““तत्नान्वये विततसात्यकियंशजन्मा
थीदन्तिदुमेदुपतिः पुरुपोत्तमो उभूत् ।””
झर्थात्-उस (यु) वंश में सात्यकि के कुल में (राप्ट्कूट ) दन्तिदुर्ग
हुं ।
परन्त॒ घमोरी (समरावती) से, राष्ट्टूट झष्णुराज (प्रयम ) के, करीब १८००
चांदी के सिक्के मिले हैं | इन पर एक तरफ राजा का मुख और दूसरी तरफ
“सपरममादेखरैमहादित्यपादाजुव्यौतश्रीकृष्णराज” लिखा है । यह कृष्णराज बि०
सं० सर (ई० स० ७७२) में विद्यमान था । इससे प्रकट होता है. कि,
उस समय तक राष्ट्कूट नरेश सूर्यनेशी ओर शैेत्र समके जाते थे ।
शाष्ट्कूट गोविन्द्साज (तृतीय ) का, श० सं० ७३० (वि० सं० ८५०
स० ८०८) का; एक दानपत्र राधनपुर से मिला है । उस में लिखा है:--
“'यस्मिन्सवंयुणाश्रये क्षितिपतो श्रीराप्ट्रकूटान्वयो-
जाते यादववेशवन्मघुरिपावासीदलेच्यः परे: 1”
(१) दलायुध ने भी सपने बनाये “कविरदस्य' में राष्ट्रकूटों का यादव सात्यकि के दंश
मैं दोना लिखा दै । कृप्य तृतीय के, श० से० ८६२ के, ताल्पत्र में भी ऐसा हो
चलेख है;- द्वराजा जयति सात्यकिंदर्गमाज:”
(९) गोविन्द्चन्द के दिन स० ११७४ के दानपन में गाइडवाल नरेशों के नाम के साथ भी
“परममादेश्वर” उपाधि लगी मिलती दे ।
(३) “पाइजुष्यात” शब्द के पूर्व का नाम, उस राष्द के पीछे दिये नाम गधे
पुरुष के, पिता का नाम समका जाता दे । परन्तु “मददादित्य” न तो कृप्याराज के
पिता का नाम ही था न उपाधि हो । ऐसी दाजत में इस शब्द से इस पेश हे मुत्त-
पुदयप का तात्पर्य लेना कुछ मजुचित न दोगा ।
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