देशी राज्यों की अंतिम ज्योति | Deshi Rajyo Ki Antim Jyoti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्तर्गाय महासज के विचार [ ९३. फिसी एक हाजिस्वासी चापदस ने महाराज से एक दिन निवेदन किया; कि “महाराजाधिराज ! इस राज्य की छुल 'झाय झभी कम यैठती है, वदद खाक्सार के खयाल से चौरनी हो सकती है। श्रीमत इस ओर कोड़िदय क्यों नहीं फरमाते ।” महाराज ने मुस्करकर इस, प्रश्न का जो उत्तर दिया, वह यह था कि ''छुम्हारे कहने के अनुसार चलने से तो बह हालत होंगी जो एक किसी लॉभी छादमी की हुई थी । सुनो--'एक लोभी के पास एक गाय थी । यदद रोजाना दुद्दाति समय अपने थनों में वच्डे के लिए दूध रस लेती थी । एक दिन उसके मालिक को शुस्सा भर 'झाया कि गाय को यवेष्ट खिलाने पिलाने पर भी दूध ज्यादा नहीं देती । इसका क्या कारण है ? वह एक दिन स्वय गाय को टुदने लगा 'और दुद्दता ही गया, जैसे-जैसे दूघ 'झाने लगा, उतना ही 'अधिक जोर से थन दुवास लगा । रात का समय था; उस जगह रोशनी नहीं थी। जो चघरतन था चह्द भी लवा लग भर कर छलकने लगा । मालिक ने सोचा कि 'साज ही गाय कादू में झाई है । देखता हूँ, कितना दूध देती है । यह सोचकर वह दूसरा यरतन लाने के लिये श्वपने रसोई 'घर से गया जहा संझाती से क्या देखता हैं कि दूध स्ेद होने के घजाय लाली लिये हुझा था । उसे अच्छी तरह से देखने पर माक्म पडा फि दूध में लाटू मिला हुआ ईैं। चह्द डे अचरज व सोच- विचार में पड गया कि इतना लालच करने से सय दूध में खुन मिल गया जो अप काम में नदी झा सकता । उसी दिन से उसने शरण कर लिया फि दूध निकालने के पइले बडे को पिलाउँगा




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