भूषण ग्रंथावली | Bhushan Granthawali

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Bhushan Granthawali by महाकवि भूषण -Mahakavi Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हक सारी सा पररि लोटि संर्यां सचानको” तया कुटकर छू सर देश में *लादि प सपृव मियणज वीर तेंने तय वाहुवल णासी पातसाही मींजापुर थी देख कर यह प्रक होता है कि भूपय शियाजी के स्वगंधास के समय दक्षिण म दी थे | क्याकि शिवाजी ने सयत्‌ १७३४ ( सन, १६७७) मे कर्नादक पर स्वदाई करने श्रीर शपने माई व्यकोजी को पत्त करने के लिए प्रयाण किया था । उस समय गालकुडा के सुनतान मे शिवाजी वो वार्षिक कर तथा सद्दायता देने का वचन नया था, दर उस प्रयाण से याजामुर व सरदार शेर्यां लोदी ने जा निमली मद्दल ( श्राधुनिक निनोमल्ली ) का गयनर था, शिवाजी को रोकने का प्रयत्न क्या था । जिसमे बह बुरी तर्द परस्त हुआ था । ( देगिये . 15८0५ ५ पा छाप, परिट016 0ए काएटत छाते कावजा।५ 9 | इसी प्रकार यीजापुर वी सना का काम शिवाजी था पजीयन का द्वतिम काम या ( देतिये 'मिरठा वा उत्थान द्वार पतन 'प्र० 2१६ ) | भूपग ग्रन्थायली में एक दो. सपादकों ने यर कल्पना मी है; कि गशियराज भूपण' श्मिषेर से ठीक १५ टिन पहले समास हुमा, दर सूपण ने उस अन्य का निर्माण शिवाजी के यप्पामिपेक थ झ्वसर पर अपनी द्वार से एक सुन्दर मैट देने के यिचार से ही शिया था । इस तरत वे श्प्रत्यक्त तीर से भूपण का शियाजी के राय्यामिषेक ये आवसर पर उपस्थित होना मानते हैं। यद मत ठीरु सहां प्रतीत होता, क्याकि शियराज भूपण समास हुआ स० १७३० में और शियागी का राज्या पमिपेफ हुमा ज्येप्र शुक्न है मि० स० १७३१ ( शक सवत्‌ १५६६ इलूत रैदु७४ ) वो | इस तरद शिवराज ूपण राय्यामिपेक से कम से कम एवं वर्ष पूर्व समात हो गया था | इस तरह उनरी यह कल्पना सर्वया नियघार है। ऐसी दालत म दो ही याते दो सकती हैं 1 या




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