संक्षिप्त बाल - हितोपदेश | Samchipta Bal Hitopadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.69 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1: १४५ 3
चस्तें ) का लाम होने-पर सौ । श्वया्ने-घन के शजेत-कमाने-में 1 « .
ब्यास्या-लित्र्ीव कहने लगा कि एक जार दक्षिण के «घंगल में- घूमते
हुए: मैंने देखा कि कुश दा में धारण करने वाला स्नान किये हुए पक सूद
बाघ सरोदर के तट पर. बता दे-दे पशथिकों | इस सोने के कंगन वो प्रइण
करो । लालच के वशीभूत होने वाले किसी यात्री ने ( दाघ के वचन रुम कर 3
रोचा--यदद सर माग्य से दोता हे--माप्य का खेल दे । परन्तु शरीर को नष्ट
करने वाले ( इस बाघ से ) शत्ति-जीविका-प्राप्त करना ( कंगन लेना ) उचिठ
नहीं, ब्रयोंकि यद दिंसफ है ।
अनिषटातू: तथापि म्रत्यवे ॥॥ १५0
ब्याख्या--कद्दा भी दै श्रप्रिय से प्रिय वस्तु के प्राप्त ्ोे पर शुम गति
नहीं दोती श्ररथत्त् बर्याण नहीं होता है । जिस श्रमृत में लरा सा भी बिप मिला
होता है बह ऋघश्य ही सत्यु कर देता हे । फिर भी देखा जाता है कि सभी जगह
धन प्राप्त बने में रन इ शक होता ही है । मनुष्य जच्र रिस््क ( खतरा ) उठाता
है तब ही उसे घन वी मात्ति देती है श्न्यया नदी । कक
, तथा स उत्तमल्यौर वैरा दी बहा गया है।
न संशप्रमनारदय' ***** यदि जीवति पश्यतिं १६0
'त्यय->तरः संशयम् श्रनाध्यय भदाणि ने परयति | संशयम् शाह यदि
सीवति पुनः पश्यति 1
शब्दाथे--्रनाददयविना चढ़े-बिना सवार हुए । मदाशिष्सवस्याण हे
ब्यास्या--मनुष्य संशय-सन्देइ में विन] पड़े, बल्दाण गहीं देखता शर्थात्
'रिस्क ( खतरा ) उठाये बिना मनुष्य ब्रा बल्यगश नहीं होता, उत्ते धन डाद की
प्राष्सि नहीं होती हे । संशय पर चढ़ बर श्रर्धात् रििक॒ उटा कर यदि व्द्द जिग्दा
रहता है तो मिर कष्याण के दर्शन बर पाता है । तात्पर्य यदद हे कि जान फोम
में डाले त्रिना-रिस्क उठाये दिना कमी सुख नहीं पा सकता है 1
सस्निरूपयामि तावत्* कथें न विश्वासभूमि: ।
/ समास--वंश-दीनः्वशेन दन इति-तत्पुरुष । गलद-नख
ना: दन्ता: च॑ यस्य सः्नहुबीदि दे
शुभ रुनना-किया, परस्मेपद, श्याशा लोटू, “मध्यम पुरुष,
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