संत कबीर | Sant Kabir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“संत कोर श्र
कबीर को अब याद आया कि उसे बाजार क्यों भेजा गया था।
“रहने दे अद ।” मां ने नाराज होकर कहा, “इतनी रात
गए कहां जाएगा ? हर बात भूल जाया करता है। तुझसे तो कुछ
भी मंगाना या कहना बेकार है । कटोरी कहां है?”
कबीर सकपकाया-- कटोरी तो वह उसी गली में खो आया
या ; हंसता हुआ बोला, “बरी मां, हू ही तो कहती है कि तेरा
कंबीरा पगला है । बस, पागल तो भुलवकड़ होते ही हैं ।”
“हां, हां, पागल तो है ही तू । चल, हाय-मुंह थो ले । मैं
अदा जलाती हूं, उसी की रोशनी में खा लेना।” मां ने झिड़हा।
कबीर हंसता हुआ बाहर चला गया । उसने अपेरे में हो
'रटोलकर लोटा दूढ़ा । पानी भरकर हा थ-पुंह घोया । फिर अन्दर
था बैठा ।
लोई आई थी ।” नोमा ने थाली उसकी ओर बढ़ाते हुए
कहा । त
तेरे लिए चटनी भी लाई थो । बड़ी देर तक इन्तजार करती
रही बेचारी । फिर घर चलो गई ।” नीमा ने कहा ।
कवीर चुप रहा ।
,. “वहततेरा बड़ खपाल रखती है।” नीमा फिर वोली,
“सोचती हूं कि उसके अन्वा से बात करू ।”
कबीर चुपचाप सात रहा ।
“चुप बयों है रे, दोलता बयों नहीं?” नोभा ने उसकी च्युप्पो
से नाराज होकर कहा, “करू उसके अब्दा से दात*-'लोई से तरे
विवाह की 7
*पमैं विवाह नहीं करूंगा, मां !” कवोर ने मुह सोसा ।
ब्क्यों 7”
“मा, हम गरीद हैं । अपना ही युारा नहीं चसा शबते ।
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