संत कबीर | Sant Kabir

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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना दि ् कार्यालय, सीयाबाग, बड़ौदा | ५.-. बीजक श्री कबीर साहब (साधु पूरनदास जी) प्रकाशित सन्‌ १९०४ बाबू मुरलीधर, काली स्थान, करनेलगंज, इलाहाबाद | ६. कबीर श्रंथावली (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी) प्रकाशित . .. सन्‌ १६२८, इंडियन प्रेस लिमिटेड, प्रयाग । ..... उपयुक्त संस्करणों में बीजक श्र. साखी ब्रंथ झअलग-झ्रलग अथवा मिले हुए ग्रंथ हैं जिनसे कबीर की कविता का ज्ञान जनता में सम्यकू रूप व से अवश्य हो गया किंतु इन सभी संस्करणों की प्रामा का की... शिकता चिंत्य है । बेलवेडियर प्रेस से प्रकाशित संतबानी- कु संग्रह का प्रचार सर्वाधिक है .किंठु यह प्रति संतों और महात्माश्रों द्वारा एकत्रित सामधी के आधार पर ही संक- लित की गई है । उसका रूप साधु संतों के गाये हुए पदों और गीतों से ही निर्मित है, किसी प्राचीन हस्तलिखित प्रति का श्राघार उसके संकलन में नहीं . लिया गया श्रौर यदि लिया भी गया है तो उसका कोई संकेत नहीं दिया गया। .... कबौरचौरा ने जो बीजक मूल की प्रति प्रकाशित की है, उसका पाठ अनेक प्रतियों के आधार पर शवश्य है किठु वे प्रतियाँ केवल “साक्चौ रूप” ही उपयोग में लाई गई हैं ।* इस प्रति का मूल श्राधार कबीरचौरा का प्राचीन प्रचलित पाठ है । किंतु यह प्राचीन पाठ किस प्रति के श्राघार पर है, इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया | श्री युगलानंद कबीरपंथी भारतपथिक की प्रति प्रामाणिक प्रतिषों की सहायता से भी प्रामाणिक नहीं हो सकी । श्री युगलानंद ने अपनी प्रति को .. श्रलेक प्रतियों से शुद्ध भी किया है । “जिन पुस्तकों से यह शुद्ध हुई है उनमें . से एक प्रति तो रसीदपुर शिवपुर निवासी श्रीमान्‌ बड़शी गोपाललाल जी पूर्व .' बीजक मूल १बीजक मूल के संपादक साथु लखुनदास श्रौर साथ रामफलदास लिखते हूँं:--- ... झपने मत तथा इस यंथ का संशोधन ग्यारह अंथों से किया है जिसमें छः टीका- ' टिप्पणी साथ हैं और पांच दाथ की लिखी पोथी हैं परंतु इन सब मंधों को साक्षी रूप में रखा था, केवल स्थान कबीरचौरा काशी के पुराने ओर प्रचलित पाठ पर विद्योष ध्यान दिया गया है | न




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