कविता और कविता | Kavita Aur Kavita

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Kavita Aur Kavita by डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

Add Infomation About. Dr. Indranath Madan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
त्मसात बरने बा प्रयास भी किया । इनको रचनाओं में नये सनुष्य का रुप खरने लगा, लेकिन अमी मानव ने व्यक्ति व। रुप घारण नहीं किया, वहूं सामान्य | विधिष्ट नहीं हो पाया । यह रुप छायावाद में आकर सम्प्न होने लगता है । सल्ए शायद आाचायें रामचन्द्र शुक नें श्रीपर पाठक को हिन्दी का पहला स्वच्छ- इठावादी बवि धोधित वियां । इनरी 'ब्योमन्याला' नामक वंबिठा, इनके प्रृति- चंदण दया नवीन मानव-प्रेम में स्वच्ठन्दततावाद के नये स्वरो को सुना ऊ सकता दे । गिरिजाकुमार मायुर ने आधुनिकता को परिमापधित करते हुए इसे 'नये मनुष्य की सोज' वा नाम दिया है । परन्तु आधुनिकदा की प्रफ्रियी आधुनिक वर्विठा के दूसरे उत्यान में आकर स्थितिशील होने लगती है। मध्यवर्गीय समाज, जिसका उदय मारनेस्दु काल में हो चुका था, अपने विकास का पथ प्रशस्त करनें वे लिए इन विशेषज्ताओं से युवत होने लगता है जिनकी अभिव्यक्ति काव्य-रच- नाजों में उपदब्ध है--'इसके सक्प में दृद्ता है, दृष्टि में निश्वयात्मकता है, वर्मे में व्यम्दता है, आचरण में शुद्धता है, मन में उत्साह है, वाणी में गरज है, वृद्ध में विश्वास है, हृदय मे शुष्वठा है, काव्य में इतिदुत्तारम ता है, मूल्यों में आंदर्ग- यादिता है, उद्देश्य में समाज-मगल की मावना है । * आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी “सरस्वती' के सम्पादक, इस जीवन-दुष्टि के प्रतीक है । आधुनिकता की प्रक्रिया के अवरद्ध होने का परिचय इस बात में मिल जाता है कि तदुमव दृष्टि के स्थान भर तत्मम दृष्टि भाषा तथा माव दोनों में पुष्ट होने लगती है, मौलिवता का स्थान अनुवाद लेने रूगता है, पुनरत्यान की मावना दृढ़ होने रूगती है। अपोध्यासिे उपाध्याय के 'प्रिय प्रवास' की भाषा तत्संम के साचे में ढलने लगती है। इृष्ण का सरित्र लीकरजक का न होवःर लोक-रक्षक वा है और राधा जयदेव वी विलासिनी, विद्यापति की मुग्धा, चण्डीदास की परकीया नायिका, सूरदास की नायरी, नन्द- दास की ताथिका, रोछिकाल की उच्छ एल एवं किशोरों राघा न होकर देश- सेविका बन जाती है। 'राघा आपुनिक युग वी जायूत एवं प्रवुद्ध नारी है। एस दृष्टिकोण मे नारी-सम्दबन्धी मध्यंदाठीन बोध वां विरोध अवप्य ध्वनित होया है। रामनरेश प्रिपाठी बे सण्ड-काव्यो में आधुनिवठा को समाजनमगल वे धरातल पर अपनाया गया है। ध्रनके बथानक पौराशिक एव ऐसिंट्राशिक न होवर बस्पिउं हैं। इसलिए भाचार्य घुवल रामनरेदा दिपाठी वे रचनाओं वो आधनिन कदिसा मे दूसरे उत्यान के बाहर रखते है; परन्तु सण्ड-वाध्य मूखत वर्तुतिष्ठ रुया विपय-पपान है और इनवों श्रेशित बरतने दाठी जोदत-दूष्टि समाज-मगल रथ भावना को है। इस सरह मात्र बल्पित बयानकों और सात रुरसतां में आपार न णणणणणकालणणणणथ १. झापुनिक बदिता बा मुस्पांवन: पु० १८




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now